प्रश्न – बिना आग के कौन जलाती है ?
उत्तर – ईर्ष्या, तृष्णा, चिन्ता, कर्जदारी, नव-जवान कुंआरी लड़की, विधवा बहु-बेटी| Continue reading “सम्राट प्रजापल के प्रश्न” »
सम्राट प्रजापल के प्रश्न
श्री प्रसन्न्चंद्र राजर्श्री
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मां की, बेटी को सीख
रानी ने कहा, मदनसेना ! दाम्पत्य जीवन की दिव्यता-शोभा तभी है, जब कि पति-पत्नी सत्ता का मोह छोड़कर परस्पर सेवाभाव, त्यागवृत्ति को अपनाए| अब तुम पराये घर जा रही हो| ससुराल में देव, गुरु, धर्म, स्वधर्मी बन्धु, देवर जेठ नणंद-भोजाई, सास-ससुर, दीन-दु:खी, रोगी और अपने अड़ोस-पड़ोस की सेवा का सारा भार तुम्हारें पर है| इसे ठीक तरह से निभाना| Continue reading “मां की, बेटी को सीख” »
दैनिक-चर्या का प्रभाव
हम बच्चों को अपने अनुशासन में रखना चाहते हैं, तो हमें भी अपने दैनिक कार्यक्रम व्यवस्थित और यथा समय करना आवश्यक है| आपके नियमित आचरण से बच्चों को सुन्दर प्रेरणा मिलती है| Continue reading “दैनिक-चर्या का प्रभाव” »
सफलता का गुप्त मंत्र
मैं महान हूँ, अब तक मैं बाह्य जड़ पदार्थो में लुभाकर सुख की खोज करता रहा किन्तु कहीं शान्ति न मिली, वास्तव में सुख है आत्मा में| सम्पूर्ण सुखों का केन्द्र है आत्मा| मैं प्रेमी हूँ, प्रेम ही मेरा जीवन है, मैं प्राणी मात्र की सेवा का प्रेमी हूँ| मैं सुखी हूँ| सफलता मेरे दाये बांये चलती है| Continue reading “सफलता का गुप्त मंत्र” »
उपाध्याय श्री यशोविजयजी
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अपने धड़कते दिल से पूछो
जिंदगी थोड़ी है, समय उससे भी कम| जैसे जैसे समय बीतता है, वैसे वैसे हम मृत्यु के निकट पहुँचते जाते हैं| आँखे खोल कर श्मशान की तरफ जाते हुए मुरदों की तरफ देखो और सोचो कि एक दिन हमारी भी यही हालत होगी| फिर क्यों न हम अनंत भव भटकने के बाद प्राप्त अति दुर्लभ अनमोल मानव भव को सफल बना ले| Continue reading “अपने धड़कते दिल से पूछो” »
पुनिया श्रावक
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परिवार की दृष्टि से न गिरो
कई बेसमझ अज्ञान महिलाएँ अपने भर्तार और घर की आय-व्यय का विचार न कर, वे विशेष वस्त्रालंकार श्रृंगार की वस्तुओं के लिये मरती हैं, कलह कर बैठती हैं| इसी मनमुटाव के कारण वे शनै: शनै: अपने परिवार और समाज की दृष्टि से गिर जाती हैं| Continue reading “परिवार की दृष्टि से न गिरो” »
सम्प्रति महाराज
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