शिक्षा का प्रारम्भ
मुरझाये फूल जिन्होंने आलोचना नहीं ली
रज्जा साध्वी ने सचित्त पानी पीया
रज्जा साध्वीजी को कोढ़ रोग हो गया था| एक साध्वीजी ने उससे पूछा कि यह रोग आपको कैसे हुआ? तब उसने कहा कि अचित्त (उबाला हुआ) पानी पीने से गर्मी के कारण यह रोग हुआ है| Continue reading “मुरझाये फूल जिन्होंने आलोचना नहीं ली” »
आलोचना का प्रायश्चित्त किसे दिया जाए?
भणियं सासणे धुयरयाणं|
उद्धरियसव्वसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसे॥
कर्मरज जिन्होंने दूर कर दी है, ऐेसे परमात्मा के शासन में कहा गया है कि शल्य (छिपाए हुए पाप) सहित कोई भी जीव शुद्ध नहीं होता है| क्लेश रहित बनकर सभी शल्यों को दूर करके ही जीव शुद्ध बनता है| अतः शुद्ध होने के लिए आलोचना अवश्य कहनी चाहिए| Continue reading “आलोचना का प्रायश्चित्त किसे दिया जाए?” »
चमत्कारी भोजन
अनित्यता
अनित्यं हि जगत् सर्वम्
पहेली
विप्र वेश में कोई यक्ष एक राजसभा में जा पहुँचा वहॉं उसने सबके सामने एक पहेली रखी – पॉंच मी पॉंच सी, पॉंच मी न सी
फिर वह बोला कि मैं परसों फिर यहॉं आऊँगा| यदि तब तक किसी ने इस पहेली का उत्तर नहीं दिया तो समझ लिया जायेगा कि इस राज्य में कोई पण्डित है ही नहीं|
राजा ने राजपण्डित से कहा कि यदि आप कल शाम तक इस पहेली का उत्तर नहीं खोज पाये, तो परसों प्रातःकाल ही आपका वध कर दिया जायेगा| यह पूरे राज्य की प्रतिष्ठा का सवाल है| बेचारा राजपण्डित निराश होकर किसी जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और विचार करने लगा| उसी पेड़ पर वही यक्ष अपनी प्रेयसी के साथ बैठा बातें कर रहा था|
प्रिये ! परसों तुम्हें अवश्य ही राजपण्डित का कलेजा खाने को मिल जायेगा| मैंने पहेली ही ऐसी पूछी है कि उसका उत्तर उसे सूझेगा ही नहीं और फिर परसों उसका निश्चित ही वध कर दिया जायेगा|
आपकी पहेली का अर्थ क्या है ? प्रेयसी ने पूछा|
पहेली पन्द्रह तिथियों पर आधारित है| पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी ये पॉंच मी वाली तिथियॉं हैं| एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णासी ये पॉंच सी वाली तिथियॉं हैं और एकम, दूज, तीज, चौथ और छठ इन पॉंचों में न मी है और न ही सी|
राजपण्डित ने यह सब सुन लिया| फिर वह घर चला गया| दूसरे दिन राजसभा में अर्थ बताकर उसने अपने प्राणों की रक्षा की|
आंखें जहां भी तुम देखो
आंखें जहां भी तुम देखो ऐसी हो जाएं शुद्ध कि वहीं परमात्मा दिखाई पड़े
इंद्रियां भी उसी के लिए द्वार बन सकती हैं| और हम इंद्रिय प्रार्थना में संलग्न हो सकती है| और उसी को हम कलाकार कहेंगे जो सारी इंद्रियों को परमात्मा में संलग्न कर दे; जो आत्मा से ही न पुकारे, देह से भी पुकारे| Continue reading “आंखें जहां भी तुम देखो” »
दृष्टि मूल्यवान है
तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ
अब तु ले चलो उस पार| अपने से तो यह न हो सकेगा| यह भवसागर बड़ा है| दूसरा किनारा दिखाई भी नहीं पड़ता है| Continue reading “तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ” »
गुरुदेव को वन्दन
गुरु भगवंत को विधिपूर्वक वन्दन करता हूँ… नमस्कार करता हूँ… सत्कार करता हूँ… सम्मान करता हूँ… Continue reading “गुरुदेव को वन्दन” »