साधु-संतों का विनय करो
भविष्य की मनोव्यथा
गुरुदेव! मुझे जब अपने जीवन की काली किताब याद आती है, तब रोंगटे खड़े हो जाते हैं| अरे जीव! तेरा क्या होगा? कण जितने सुख के लिए मण जितने पाप किये हैं, उनसे टन जितना दुःख आएगा, उन्हें तू किस तरह सहन करेगा? गुरुदेव, जरा-सी गर्मी पड़ती है, तो आकुल-व्याकुल होकर पंखे या एयरकंडिशन की हवा खाने के लिये दौड़ता हूँ, तो फिर नरक की भयंकर भट्ठियों की असह्य गर्मी को कैसे बर्दाश्त करूँगा? जहॉं लोहा क्षणभर में पिघल कर पानी जैसा प्रवाही बन जाता है, परमाधामी भट्ठी के ऊपर मुझे भुट्टे की तरह सेकेंगे, तब गर्मी कैसे सहन कर सकूँगा? तड़प-तड़प कर आकुल-व्याकुल बने मन को आश्वासन देनेवाले वचनों के बदले परमाधामी के कड़वे वचन सहन करने पड़ेंगे, ‘‘ले, अब कर मज़ा|’’ Continue reading “भविष्य की मनोव्यथा” »
ज़िन्दगी – परिवर्तन का नाम है
अप्काय को पहचानो
कच्चे पानी की प्रत्येक बूंद में असंख्य अप्काय एकेन्द्रिय जीव रहते हैं| इसलिए पानी का फालतू, जरूरत से ज्यादा व निरर्थक उपयोग तो करना ही नहीं चाहिए| Continue reading “अप्काय को पहचानो” »
अखरोट का पौधा
शाश्वतसुख के स्वामी
हे विश्वेश्वर!
हे परमात्मा !
हे देवाधिदेव !
हे त्रिलोकनाथ !
हे विश्वकल्याणकर्ता विश्वोद्धारक! Continue reading “शाश्वतसुख के स्वामी” »
तेउकाय की जयणा
प्रत्येक प्रकार की अग्नि में एकेंद्रिय जीव होते हैं, उन्हें अग्निकाय कहते हैं| विद्युत भी अग्निकाय है| अग्नि के एक तिनके में असंख्य अग्निकाय जीव होते हैं| Continue reading “तेउकाय की जयणा” »
पर्युषण महापर्व – कर्तव्य तीसरा
कर्तव्य तीसरा – क्षमापना
एक अमरिकन प्रेसिडेन्ट की पत्नी एक बार पागलों की अस्पताल की मुलाकात लेने गई| वहॉं उस संस्थाके एक सभ्य के साथ उसका मिलाप हुआ| दिखने में वह स्वस्थ, सुघड़ और बुद्धिमान दिखाई देता था| उसमें पागलपन का एक भी चिह्न दिखाई नहीं देता था| वार्तालाप करने की रीत भी सभ्य और अच्छी थी| उसकी ऐसी सभ्यता से प्रभावित होकर उस अमरिकन महिलाने रसपूर्वक पूछ लिया कि- क्या आप यहॉं के सुपरवाइज़र हो, या कर्मचारी हो ? उसने हँसकर और कुछ नाराजगीभरें भावसे कहा- ना जी ! मुझे यहॉं तीन सालसे पागल मानकर कैद कर रखा है| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य तीसरा” »
जयणा हमारी माता
अष्टप्रवचन माता यदि साधु की माता है, तो जयणा श्रावक की माता है| जयणा याने जीवरक्षा के प्रति सावधानी|
हमारे चारों तरफ विशाल जीवसृष्टि बिखरी हुई है| आँगन में बिल्लीयॉं हैं तो, गलियों में कुत्ते फिरते हैं| रसोई घर में झिंगुर है तो, शयनकक्ष में खटमल हैं| बिलो में चूहे रहते हैं तो, कहीं चींटियों के दर हैं| बालों में जूं है, छत व दिवारों पर पक्षियों के घोंसले है तो कहीं मकड़ी के जाले हैं| फर्नीचर व दीवार पर दीमक फैली हुई है| चारों तरफ मच्छर उड़ रहे हैं| नल में से आ रहे पानी में असंख्य त्रस जीव हैं| अनाज मे लट वगैरह है, तो साग-सब्जी में भी कई जीव, लट वगैरह मिलते हैं| Continue reading “जयणा हमारी माता” »
निगोद को पहचानें
(चार्तुास) वर्षा ऋतु में घर के कम्पाऊंड में, पुरानी दीवारों पर अथवा मकान की छत (अगासी) पर हरी, काली, कत्थई आदि रंगों की काई (सेवाल-लील) जम जाती है| उसी को निगोद कहते हैं| Continue reading “निगोद को पहचानें” »