1 0 Tag Archives: जैन सिद्धांत
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पर्युषण महापर्व – कर्तव्य पॉंचवॉं

पर्युषण महापर्व   कर्तव्य पॉंचवॉं

कर्तव्य पॉंचवॉं – चैत्यपरिपाटी

जब अन्य जीव अपना अस्तित्व बनाएँ रखने के लिए प्रयत्नशील हैं, तब मनुष्य अपने व्यक्तित्व को खिलाने-विकसित करने एवं सहेजने-संवरने के लिए दौड़ रहा है| सचमुच तो परमात्मारूप करुणासागरमें गंगाकी तरह घुलकर अस्तित्व और व्यक्तित्व दोनों को विलीन कर देना है| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य पॉंचवॉं” »

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कमलश्री कुत्ती, बंदरी बनी

कमलश्री कुत्ती, बंदरी बनी
शिवभूति और वसुभूति दो भाई थे| शिवभूति की स्त्री कमलश्री अपने देवर वसुभूति के प्रति राग वाली बनी और उसने मोहवश अनुचित याचना की| भाभी के ऐसे अनुचित वचनों को सुनकर वसुभूति विचार करने लगा कि-‘‘ओह ! धिक्कार हो कामवासना को, जो ऐसी अनुचित याचना करवाती है| मुझे तो, किसी भी हालत में कामाधीन नहीं होना है|’’ इस प्रकार वैराग्य उत्पन्न होने पर उसने दीक्षा ग्रहण कर ली| यह बात कमलश्री तक पहुँची| राग के उदय से आर्तध्यान में रहती हुई वह मानसिक और वाचिक पाप की आलोचना लिए बिना ही शुनी (कुत्ती) के रूप में उत्पन्न हुई| Continue reading “कमलश्री कुत्ती, बंदरी बनी” »

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ज्ञान की रोशनी

ज्ञान की रोशनी

नमो नमो नाणदिवायरस्स
ज्ञान की रोशनी में मेरा जीवन-पथ आलोकित हो…ज्ञान को रोशनी से मार्ग के कॉंटें दृष्टिगोचर हो…मुझे अब भीतर जाना है| Continue reading “ज्ञान की रोशनी” »

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प्रायश्‍चित की ताकत

प्रायश्‍चित की ताकत
केन्सर की गॉंठ हो, फिर भी ऑपरेशन कीया जाए, तो मरीज़ अच्छा हो जाता है| परंतु जो एक छोटा-सा भी कॉंटा पॉंव में रह जाये, तो इंसान को मार डालता हैं| इसी प्रकार बड़े-बड़े पाप जीवन में हो गये हो, तो भी प्रायश्‍चित-आलोचना के प्रताप से जीव धवल हंस के पंख की तरह निर्मल बन सकता है| Continue reading “प्रायश्‍चित की ताकत” »

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अंजनासुन्दरी

अंजनासुन्दरी
एक राजा की दो पत्नियॉं थी| लक्ष्मीवती और कनकोदरी| लक्ष्मीवती रानी ने अरिहंत-परमात्मा की रत्नजड़ित मूर्त्ति बनवाकर अपने गृहचैत्य में उसकी स्थापना की| वह उसकी पूजा-भक्ति में सदा तल्लीन रहने लगी| उसकी भक्ति की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी| ‘‘धन्य है रानी लक्ष्मीवती को, दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय|’’ यह रानी तो सुख में भी प्रभु सुमिरन करती हैंै, धन्य है !!’ Continue reading “अंजनासुन्दरी” »

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जीवन का निर्माण

जीवन का निर्माण
जन्म का प्रारम्भ तो सभी का एक जैसा होता है लेकिन अन्त एक जैसा नहीं होता| सुबह तो सभी की एक सी है पर शाम भिन्न-भिन्न है| Continue reading “जीवन का निर्माण” »

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अपरिग्रह

अपरिग्रह

मुच्छा परिग्गहो वुत्तो
किसी भी वस्तु के प्रति मूर्च्छा का भाव ही परिग्रह है| मूर्च्छा परिग्रह है| परिग्रह का अर्थ है संग्रह और अपरिग्रह का अर्थ है त्याग| किसी वस्तु का अनावश्यक संग्रह न करके उसका जन-कल्याण हेतु वितरण कर देना| परिग्रह मनुष्य को अहंकार एवं मोहरूपी अँधेरे के अथाह भंवर में डुबो देने वाला होता है| धन की परिग्रहवृत्ति काम, क्रोध, मान और लोभ की उद्भाविका है| Continue reading “अपरिग्रह” »

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जीव विचार – गाथा 7

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सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है

सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है
अगर तुम्हारा पात्र भीतर से बिलकुल शुद्ध है, निर्मल है, निर्दोष है, तो जहर भी तुम्हारे पात्र में जाकर निर्मल और निर्दोष हो जाएगा| Continue reading “सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है” »

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चहक एक चिड़िया की

चहक एक चिड़िया की
एक पेड़ पर चिड़िया अपनी मस्ती में चहक रही थी| उस पेड़ के नीचे एक भक्त विश्राम कर रहा था| चिड़िया की चहक सुनकर भक्त बोला, ‘‘अहा ! चिड़िया भी भगवान को याद कर रही है|’’ Continue reading “चहक एक चिड़िया की” »

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