सम्यक्त्व का अर्थ है, निर्मल दृष्टि, सच्ची श्रद्धा और सच्ची लगन| सम्यक्त्व ही मुक्ति-मार्ग की प्रथम सीढ़ी है| जब तक सम्यक्त्व नहीं है, तब तक समस्त ज्ञान और चारित्र मिथ्या है| जैसे अंक के बिना बिन्दुओं की लम्बी लकीर बना देने पर भी, उसका कोई अर्थ नहीं होता, उससे कोई संख्या तैयार नहीं होती, उसी प्रकार समकित के बिना ज्ञान और चारित्र का कोई उपयोग नहीं, वे शून्यवत् निष्फल है| अगर सम्यक्त्व रूपी अंक हो और उसके बाद ज्ञान और क्रिया (चारित्र) हो तो जैसे एक के अंक पर प्रत्येक शून्य से दस गुनी कीमत हो जाती है, वैसे ही ज्ञान और चारित्र-दान, शील, तप-जप आदि मोक्ष के साधक होते हैं| मुक्ति के लिये सम्यग्दर्शन की सर्वप्रथम अपेक्षा रहती है| Continue reading “आत्मा का स्वाभाविक धर्म – सम्यक्त्व” »