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श्रीफल का महत्त्व

श्रीफल का महत्त्व

श्रीफल रखुं मैं हाथ में, इसमें है पानी भरा
प्रिय जमाई आप रखना, मन को सदा गहरा भरा
गृहस्थ जीवन भी एक समस्या है| दो बर्तन हो वहॉं आपस में टकराने की संभावना रहती है, उसी प्रकार वरवधू की सौम्य प्रकृति के अभाव में परस्पर अनबन हो सकती है, किन्तु मनमुटाव नहीं| Continue reading “श्रीफल का महत्त्व” »

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ऋतु (मासिक) धर्म का पालन

ऋतु (मासिक) धर्म का पालन
मदनसेना ! ऋतुस्त्राव-रजोदर्शन को मासिक-धर्म कहते हैं| स्वास्थ्य के लिये इस का मास के अंत में होना आवश्यक है| यदि मासिक-धर्म ठीक समय और बिना कष्ट के उचित मात्रा में न हो तो शीघ्र ही उसकी चिकित्सा करना चाहिये| इसमें संकोच और विलंब करना बड़ा घातक है| Continue reading “ऋतु (मासिक) धर्म का पालन” »

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मन क्या है?

मन क्या है?
इसे न तो तुम्हारी तेज आँखे देख सकती हैं न हाथ ही उसे अपने आधीन रख सकते हैं| मन का न कोई रुप है, न रंग, न आकार| वह विचित्र है, सब देखता है, सब सुनता है| हम जिस शक्ति द्वारा सुख-दु:ख का अनुभव करते हैं उसी अदृश्य शक्ति का नाम है मन| Continue reading “मन क्या है?” »

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इन शब्दों को न भूलो

इन शब्दों को न भूलो
1. मृदु स्वभाव, सदा हँस कर बोलो|

2. माता-पिता, भाई-बहन, सास-ससुर, ननद-जेठानी आदि परिवार से प्रेम रखो|

3. परिश्रमी स्वभाव, कभी बेकार न रहना|

4. बड़ों की सेवा, उनका आदर, छोटों के प्रति स्नेह रखना| Continue reading “इन शब्दों को न भूलो” »

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बच्चों से व्यवहार कैसे करें ?

बच्चों से व्यवहार कैसे करें ?
बच्चों से न अधिक लाड़ करें और न उन्हें मार-पीट कर धुतकारें| अधिक लाड़ प्यार से वे सर पर चड़ कर भविष्य में अपना जीवन बिगाड़, आपको दु:ख देंगे| Continue reading “बच्चों से व्यवहार कैसे करें ?” »

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दिव्य शक्ति जागृत कब होगी?

दिव्य शक्ति जागृत कब होगी?
जबकि तुम निंदा, ईर्षा, छिद्रान्वेषण, चञ्चलता और मोह से बचकर प्रेम समभाव एवं सन्तोष से अपने मन को सुशिक्षित करोगे|

भय मनुष्य का भयंकर शत्रु है, इसकी जड़ को मन से निर्मूल कर दो, पतन की ओर ले जाने वाली चिंताओं को हृदय से सदा के लिए अलग कर दो| ध्वंसकारी विचार ही तुम्हें निर्बल और मुर्दा बनाते हैं| इससे न तो जीवन को नवीन प्रकाश मिलता है न नसों में नए रक्त का संचार होता है| रक्त संचार के अभाव में मनुष्य दीन हीन बन, असमय में युवावस्था से हाथ धो, अपनी शक्ल सूरत को बूढेपन में बदल देता हैं| Continue reading “दिव्य शक्ति जागृत कब होगी?” »

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बच्चों से संभाषण कैसे करें

बच्चों से संभाषण कैसे करें
बच्चों को आरंभिक संभाषण का वरदान माता-पिता से ही प्राप्त होता है| बच्चे बड़ों की बात सुन कर ही, बहुत कुछ सीखते हैं| अतएव जब आप उनसे बात करें, उन्हें खिलौना न समझकर एक व्यक्ति समझे| बच्चों में तर्क बुद्धि नहीं होती| वे अपने बड़े बूढ़ों की बात को ही सच समझते हैं| सुनी सुनाई बातों पर वे विश्वास कर लेते हैं|

बच्चों से बातचीत करते समय उसकी समझ तथा जानकारी का ध्यान अवश्य रखें| छोटे वाक्य, सरल भाषा तथा परिचित विषय चुनने चाहिए| बच्चे आपकी बोल-चाल की भाषा ही समझ सकते हैं|

बच्चों से बात-चीत करते समय जोर जोर से हंसना, धमका कर या चिल्लाकर बोलना, हंसी मजाक में अशिष्ट गन्दे शब्दों का प्रयोग, हाथ-मुँह बनाकर बातें करना आदि ढंग बुरे हैं| बच्चे इन दुर्गुणों की झट नकल कर लेते है| बात-चीत में दोष आ जाने से बच्चों का व्यक्तित्व प्रभाव-हीन हो जाता है| जल्दी-जल्दी बोलना कुछ तकिया कलाम यथा-समझे न, ‘हां तो’, ‘क्या समझे’, बड़े आये, ठीक है बड़े अच्छे, ठा पड़ी, कई नाम जो, आदि निरर्थक शब्दों का प्रयोग बच्चे सुन सुन कर ही सीख जाते है| इसी प्रकार हाथ हिला-हिला बात करना, मुँह फुलाना, आँखे झपकाना, कचर-कचर जल्दी-जल्दी कतरनी सी जीभ चलाना आदि दोष भी बच्चों मे देखा-देखी ही आ जाते हैं| अत: बच्चों के साथ माता-पिता को बड़ी ही सावधानी से संभाषण करना चाहिए|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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इच्छाशक्ति का मंत्र

इच्छाशक्ति का मंत्र
1. मेरे गर्भ में एक ऐसा जीवन पनप रहा है, जो कि महान् आत्मा होगा, उसके जीवन से लाखों का उपकार होगा, वह राष्ट्र और समाज का चमकता चांद होगा|

2. मेरी संतान गौर वर्ण, कमल नयन, अति सुन्दर, हृष्ट-पुष्ट, तेजस्वी और संयमी होगी| मेरा लाल आनन्दी, प्रसन्न मन और दृढ संकल्प का आदर्श नररत्न होगा| Continue reading “इच्छाशक्ति का मंत्र” »

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प्रसव विज्ञान

प्रसव विज्ञान
स्त्री को साहित्य, विज्ञान और दर्शन जानने की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी कि उसे सु-माता बनने की रीति जानने की| जिस जाति में सुमाताओं की संख्या अधिक है, वह जाति उतनी ही उत्तम और श्रेष्ठ है| मानव जीवन के निर्माण में माता का विशेष हाथ रहता है| मॉं का पुत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है| यह जानना हो तो प्रसिद्ध महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़िये| Continue reading “प्रसव विज्ञान” »

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दोहृद (दोहला) का फल

दोहृद (दोहला) का फल
कल्पसूत्र में सिद्धार्थ त्रिशला के जिस दोहृद (इच्छा) को पूर्ण न कर सके थे, उसे पूर्ण करने के लिए स्वयं इन्द्र महाराज को हार खाकर इन्द्राणी के कुण्डल देने पड़े थे|

कर्मणा-चोदितं जन्तोर्भवितव्यं पुनर्भवेत्|
यथा तथा दैवयोगा-द्दोहृदं जनयेत् हृदि
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