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उद्यापन – साल का नौवां कर्तव्य

उद्यापन   साल का नौवां कर्तव्य
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के, जिनालय के, पढ़ाई के, सामायिक, पौषध आदि के और साधु-साध्वीजी भगवंत के उपकरण इत्यादिको तैयार करके उद्यापन करना चाहिए| संसार में परिभ्रमण करानेवाले साधन को अधिकरण कहते हैं और मोक्षमार्गमें सहायक बनने वाले साधन को उपकरण कहते हैं| कपड़े धोने का डंडा अधिकरण और साधुका दंड उपकरण| Continue reading “उद्यापन – साल का नौवां कर्तव्य” »

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क्षमा-याचना – केवलज्ञान की सीढ़ी

क्षमा याचना   केवलज्ञान की सीढ़ी
जो व्यक्ति मृगावती या तो चंडरुद्राचार्य के शिष्य की तरह निर्विवाद क्षमा-याचना करते हैं, वे केवलज्ञान पाते हैं| धर्मसागर उपाध्याय की तरह छोटे-बड़े का भेद भूलकर क्षमा याचना करनेवाला सर्वत्र शांति और समाधि की सौरभ को फैला सकता है और संवत्सरी प्रतिक्रमण जैसी महान धर्मक्रिया को प्राणवन्त बना सकता है| Continue reading “क्षमा-याचना – केवलज्ञान की सीढ़ी” »

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क्षमा – सच्चा अमृत

क्षमा   सच्चा अमृत
‘‘क्षमा’’ ही सच्चा अमृत है’’, इस बात को सभी विद्वानोंने मान्य कर दी| बस, संवत्सरी पर्व का आलंबन लेकर शक्कर – इलायची के पानी से भी अधिक मधुरतावाले क्षमामृत के प्याले ही भर भर के पीओ और पिलाओ| Continue reading “क्षमा – सच्चा अमृत” »

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श्रावक के जीवनभर करने योग्य १८ कर्तव्य

श्रावक के जीवनभर करने योग्य १८ कर्तव्य

जम्मंमि वासठाणं तिवग्गसिद्धई कारणं उचिअं|
उचिअं विज्जागहणं पाणिगहणं च मित्ताई॥
श्राद्धविधि प्रकरणमें पूज्य आचार्य रत्नशेखरसूरि महाराजने श्रावक के जीवनमें करने योग्य अठारह कर्तव्य बताये हैं| Continue reading “श्रावक के जीवनभर करने योग्य १८ कर्तव्य” »

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श्रावक के दैनिक 6 कर्तव्य

श्रावक के दैनिक 6 कर्तव्य

जिनेन्द्रपूजा गुरुपर्युपास्तिः
सत्वानुकम्पा शुभपात्रदानम्|
गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य
नृजन्मवृक्षस्य फलान्यमूनि॥
पर्युषण के दिन यानी कि आत्माके लिए महोत्सव के दिन| इन दिनोमें विशिष्ट आराधना यानी कि आत्मा के लिए मिष्टान्न भोजन| लेकिन प्रसंग पर मिष्टान्न भोजन करनेवाला सामान्य से हररोज मिष्टान्न नहीं खाता, उसका मतलब उपवास नहीं करता… दाल, चावल, रोटी और सब्जी तो जीमता ही है| Continue reading “श्रावक के दैनिक 6 कर्तव्य” »

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यात्रात्रिक – साल का तीसरा कर्तव्य

यात्रात्रिक   साल का तीसरा कर्तव्य

अट्ठाई महोत्सव

देवताएँ प्रभुके जन्मादि कल्याणकों के उत्सव को मनाने के बाद छलकते प्रमोद-हर्षको सार्थक करने के लिए नंदीश्वर द्वीपमें जाकर अट्ठाई महोत्सव करते हैं| भगवानने बताई हुई पर्युषणआदि आराधना निर्विघ्न रूपसे बहुत ही उल्लास सभर संपन्न हुई| ससे उद्भवित हर्षको पूर्ण करने हेतु स्वयं या तो समस्त संघ इकट्ठा होकर अट्ठाई महोत्सव करता है| Continue reading “यात्रात्रिक – साल का तीसरा कर्तव्य” »

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क्षमा-याचना के अवसर पर

क्षमा याचना के अवसर पर

१) खुदको ही अपराधी मानना…दोनों को नहीं|
२) मनसे अपने अपराधों का स्वीकार करना|
३) अपनी भूलके कारण जिसको सहना पड़ा है, उसकी उदारता और सहनशक्ति की प्रशंसा करना|
४) ‘‘फिरसे ऐसी भूल नहीं होगी’’ ऐसे मानसिक संकल्प के साथ उस तरह का वचन देना|
५) जिसके पास क्षमा-याचना करते हो वह शायद तिरस्कार करे या फिटकार दे, तब भी स्वस्थ रहना चाहिए और बिचार करना कि मेरी भूलके कारण उसका दिल कितना जख्मी हुआ होगा कि दिलमें लगी हुई चोट के कारण मुझे इतना धिक्कार दे रहे हैं| अरे ! मैंने कैसा दुष्कृत किया|
६) उस समय या बादमें दूसरा कोई आपकी क्षमा मांगने की हिंमत को दाद दे और ‘फिर भी क्षमा देनेवाले ने कैसा तिरस्कार किया’ कहकर उसकी निंदा करे, तब उसे वास्तविकता बताकर खुले दिलसे ईकरार करना की ‘भाई ! मैंने निर्मम बनकर मेरे अपराधोंसे उनके दिलको जो ठेस पहुंचाई है, उसके सामने यह तिरस्कार बहुत ही सामान्य, गिनती में लेने लायक नहीं है|’ ऐसे बिचारों से मनको क्षमामय बना दें| Continue reading “क्षमा-याचना के अवसर पर” »

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देवद्रव्य की वृद्धि – साल का पाँचवा कर्तव्य

देवद्रव्य की वृद्धि   साल का पाँचवा कर्तव्य
पूर्वके कालमें जिनालयों को खंडित करने के प्रसंग अधिक बनते थे| मुसलमान बादशाह-सुबा इत्यादिने बहुत जिनालयों को खंडित किया| दूसरी तरफ परदेशिओं के राज्यमें जैन व्यापारिओं को असुविधा के कारण आमदानी का प्रश्न भी खडा हुआ| जिनालयों के आधार पर टीकी हुई जैन परंपरा का नाश हो जाए ऐसी परिस्थिति का भी निर्माण होने लगा| अतः उस समय देवद्रव्य की विशेष आवश्यकता खडी हुई| स्वप्न की बोली इत्यादिसे संचित हुई देवद्रव्य की राशिसे जिनालयों के जिर्णोद्धारादि कार्य शुरु रहने से ही आज हमें भव्य जिनालयों का मीरास मिला है| Continue reading “देवद्रव्य की वृद्धि – साल का पाँचवा कर्तव्य” »

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आलोचना शुद्धि – साल का ग्यारहवां कर्तव्य

आलोचना शुद्धि   साल का ग्यारहवां कर्तव्य
यह कर्तव्य अत्यंत महत्वपूर्ण है| अहंकार के कारण जीवको कभी भी अपनी गलती नहीं दिखाई देती|

धमाका हुआ| तब भतीजेने पूछा, ‘‘चाचा ! क्या हुआ ?’’ चाचाने कहा, ‘‘कुछ नहीं बेटा… वह तो मेरी धोती, कफनी और टोपी गिर गई|’’ भतीजेने पुनः प्रश्न किया, ‘‘किन्तु इसमें इतनी आवाज़ ?’’ चाचाने कहा, ‘‘तू समझता नहीं है, उसमें मैं भी था !’’ बात यह है कि चाचा कहने के लिए तैयार नही है कि, ‘‘मैं गिर गया’’| Continue reading “आलोचना शुद्धि – साल का ग्यारहवां कर्तव्य” »

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क्षमापना – एक पर्वाधिराज

क्षमापना   एक पर्वाधिराज
क्षमापना तो पर्वाधिराज के प्राणसमान हैं| जिस तरह हज़ार कि.मी. रेल की पटरी से एक इँच पटरी भी यदि तुट जाये, तो ट्रेन लुढ़क जाती है उसी तरह मनमें एक जीवके प्रति भी यदि द्वेष का अंश रह गया, तो आपकी आराधनाकी पूरी ट्रेन ही लुढ़क जायेगी| जिस तरह कारमें आगे देखनेवाला अकस्मात से बच जाता है, ठीक उसी तरह भूतकाल को भूलकर जो व्यक्ति भविष्यमें आगे बढ़ना चाहता है, वह ही दुर्गतिओंसे बच सकता है| Continue reading “क्षमापना – एक पर्वाधिराज” »

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