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पर्युषण महापर्व – कर्तव्य पॉंचवॉं

पर्युषण महापर्व   कर्तव्य पॉंचवॉं

कर्तव्य पॉंचवॉं – चैत्यपरिपाटी

जब अन्य जीव अपना अस्तित्व बनाएँ रखने के लिए प्रयत्नशील हैं, तब मनुष्य अपने व्यक्तित्व को खिलाने-विकसित करने एवं सहेजने-संवरने के लिए दौड़ रहा है| सचमुच तो परमात्मारूप करुणासागरमें गंगाकी तरह घुलकर अस्तित्व और व्यक्तित्व दोनों को विलीन कर देना है| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य पॉंचवॉं” »

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पर्युषण महापर्व – दूसरा दिन

पर्युषण महापर्व   दूसरा दिन

पर्वाणि सन्ति प्रोक्तानि, बहूनि श्री जिनागमे,
पर्युषणा समं नान्यत्, कर्मणां मर्मभेदकृत्|
जैनशासन में छः अट्ठाईयॉं बताई गई हैं| कार्तिक-फाल्गुन-आषाढ़ की तीन चौमासी अट्ठाई, चैत्र-आश्विन मास की नवपद की शाश्वती ओली की दो अट्ठाई और पर्युषण पर्व की एक अट्ठाई| प्रायः पर्युषण के समय पर सूर्य-सिंह राशि का अपने घरमें-स्वग्रही होता है| पर्युषण के शुभारंभ में मनका कारक चंद्र भी प्रायः कर्कराशी में यानी कि अपने घरमें होता है| Continue reading “पर्युषण महापर्व – दूसरा दिन” »

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पर्युषण महापर्व

पर्युषण महापर्व

पर्वाणि सन्ति प्रोक्तानि बहूनि श्री जिनागमे|
पर्युषणासमं नान्यत् कर्मणां मर्मभेदकृत्॥

जय हो अनंत उपकारी वीतराग सर्वज्ञ अरिहंत परमात्मा की, जिन्होंने पर्वो में श्रेष्ठ ऐसे पर्युषण महापर्व का प्रकाश दिया| यह प्रकाश मनुष्य-जन्म में जैन को ही सरलतापूर्वक प्राप्त होता है, इसलिए मानवभवमें तो धर्मकी विशेष आराधना करनी चाहिए|

तीन युवक परदेश जाकर आये| एयरपोर्ट पर ही अग्रगण ओफिसरने तीन में से प्रथम महाराष्ट्रियन युवक को पूछा- ‘‘आप परदेश में क्या करके आये ?’’ उसने जवाब दिया- ‘‘मैं परदेशमें च.इ.अ. पास करके आया|’’ बादमें दूसरे बंगाली युवक को पूछा- ‘‘आप विदेश में क्या करके आये ?’’ उसने जवाब दिया- ‘‘मैं डोक्टरी पास करके आया|’’ बादमें तीसरे सरदारजी को पूछा – ‘‘आप विदेश में क्या करके आये?’’ सरदारजीने कहा – ‘‘मैं अमरिका में टाइम पास करके आया|’’ Continue reading “पर्युषण महापर्व” »

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मौन एकादशी

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पर्युषण महापर्व – कर्तव्य तीसरा

पर्युषण महापर्व   कर्तव्य तीसरा

कर्तव्य तीसरा – क्षमापना

एक अमरिकन प्रेसिडेन्ट की पत्नी एक बार पागलों की अस्पताल की मुलाकात लेने गई| वहॉं उस संस्थाके एक सभ्य के साथ उसका मिलाप हुआ| दिखने में वह स्वस्थ, सुघड़ और बुद्धिमान दिखाई देता था| उसमें पागलपन का एक भी चिह्न दिखाई नहीं देता था| वार्तालाप करने की रीत भी सभ्य और अच्छी थी| उसकी ऐसी सभ्यता से प्रभावित होकर उस अमरिकन महिलाने रसपूर्वक पूछ लिया कि- क्या आप यहॉं के सुपरवाइज़र हो, या कर्मचारी हो ? उसने हँसकर और कुछ नाराजगीभरें भावसे कहा- ना जी ! मुझे यहॉं तीन सालसे पागल मानकर कैद कर रखा है| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य तीसरा” »

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पर्युषण महापर्व – कर्तव्य पहला

पर्युषण महापर्व   कर्तव्य पहला

“कर्तव्य पहला – अमारि प्रवर्तन”

धर्मका मूल दया है -

दया धर्मका मूल है, पापमूल अभिमान,
तुलसी दया न छोड़ीये, जब लग घटमें प्राण||

जब दया जीवनकर्तव्य है, तब पर्युषण का तो महाकर्तव्य बनता ही है| इसे प्रथम नंबर का कर्तव्य समझना, क्योंकि दयासे अपना हृदय मृदु-कोमल बनता है और कोमल हृदयमें दूसरे सभी धर्म अच्छी तरह से बास कर सकते हैं| भूमि को जोतकर मुलायम बनायी हो, तो ही उसमें बीज को बोया जा सकता है| इसलिए यहॉं पर्युषणमें दया-अमारि प्रवर्तन का पहला कर्तव्य पालन करके हृदयको कोमल-मुलायम सा बनाना है, जिससे उसमें साधर्मिक भक्ति, क्षमापना, त्याग, तपश्चर्यादि धर्मो को बोया जा सके| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य पहला” »

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पर्युषण महापर्व – तीसरा दिन

पर्युषण महापर्व   तीसरा दिन

पर्वाणि सन्ति प्रोक्तानि, बहूनि श्री जिनागमे|
पर्युषणासमं नान्यत् कर्मणां मर्मभेदकृत्॥
दक्षिण ध्रुवमें कई सालोंसे बरफवर्षा होती है| इसलिए जमीन पर बरफ के ऐसे स्तर जमे हैं कि ५-६ माईल तक खुदाई करने पर भी जमीन का स्पर्श नहीं कर पाते| मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योगके कारण अनंतभवोंसे अपनी आत्मा पर भी लगातार कर्मोंकी वर्षा हो रही है| Continue reading “पर्युषण महापर्व – तीसरा दिन” »

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पर्युषण महापर्व – कर्तव्य दूसरा

पर्युषण महापर्व   कर्तव्य दूसरा

कर्तव्य दूसरा – साधर्मिक भक्ति

द्वितीय कर्त्तव्य… साधर्मिक भक्ति ‘‘मेरा सो मेरा ही’’ ऐसी स्वार्थ वृत्ति को दूर करता है| बुद्धिनिधान अभयकुमार नामक साधर्मिक ने कालसौरिक कसाइर्२ के पुत्र सुलस को जैनधर्म-अहिंसा की प्रेरणा देकर हिंसक धंधे से दूर होने के लिए जोर-बल दिया था| मृत्यु के समय भाई के प्रति द्वेष रखने के कारण नरकमें जाकर संसार वनमें भटकने के लिए तैयार युगबाहु को पत्नी मदनरेखाने कल्याणमित्र की भूमिका बजा कर-सच्चा रिश्ता साधर्मिक का इस बात को सिद्ध करके… भाई के प्रति वैरभाव से जो असमाधि उत्पन्न हुई थी, उसको दूर करके सद्गति दिलाई और संसारमें भटकने से बचा लिया था| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य दूसरा” »

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पर्युषण महापर्व – कर्तव्य चौथा

पर्युषण महापर्व   कर्तव्य चौथा

कर्तव्य चौथा – अट्ठमतप

सम्यक्त्वी की विधिपूर्वक की नवकारशी जितने तपसे नरकमें दुःख सहन करने में कारणभूत १०० सालके पापकर्मों का नाश हो जाता है| इस मार्ग पर यदि आगे बढ़े तो पोरिसी से १००० साल… एकासणासे १० लाख साल, उपवाससे १० हज़ार करोड वर्ष, छट्ठ से १ लाख करोड़ वर्ष और अट्ठमसे १० लाख करोड़ वर्ष के पाप नष्ट होते हैं| दो इँच की जीभ के रस को पुष्ट करने के लिए अनादिकाल से अभक्ष्य भोजनादि करके किये हुए पाप का प्रायश्चित अट्ठम तप है, जो आहारसंज्ञा को तोडने में भी सुरंग समान है| यह तप नामके अग्नि से एक ही झटकेमें कर्मोके हजारो टन कचरे का निकाल होता है| विशिष्ट तपके प्रभावसे ही नंदिषेण मुनि आदि की तरह ढ़ेर सारी लब्धि प्राप्त होती हैं| Continue reading “पर्युषण महापर्व – कर्तव्य चौथा” »

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