संसारे सञ्चलत्येव सुखदुःखैकसन्ततिः
परिवर्तन इस संसार का निश्चित नियम है…चाहें हम इस परिवर्तन को पसंद करे या नापसंद करें परन्तु उसे स्वीकारना पड़ेगा| समता भाव से जीवन में होने वाले हर परिवर्तन को स्वीकारना ही चाहिए| कहा भी है -
सुख में ही सब यार होते हैं, दुःख में कपड़े भी भार होते हैं| सुख-दुःख दोनों में जो सम है, वे विरले सौ में चार होते हैं॥
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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