मैं महान हूँ, अब तक मैं बाह्य जड़ पदार्थो में लुभाकर सुख की खोज करता रहा किन्तु कहीं शान्ति न मिली, वास्तव में सुख है आत्मा में| सम्पूर्ण सुखों का केन्द्र है आत्मा| मैं प्रेमी हूँ, प्रेम ही मेरा जीवन है, मैं प्राणी मात्र की सेवा का प्रेमी हूँ| मैं सुखी हूँ| सफलता मेरे दाये बांये चलती है|
इन शब्दों को बार बार दोहराने से, यह मंत्र-स्त्री पुरुष दोनों के लिए एक सा लाभ प्रद है| जब तक उक्त मंत्र का आपको अच्छा अभ्यास हो जायगा तब आप अपने को एक अद्भुत प्रकाश की तरफ बढ़ते पाओगे| प्रेमज्योति आपको बहुत ऊँचे आसन पर बिराजमान कर देगी| प्रेम ही ऐसी विपुल सम्पत्ति है, जिसे त्रैलोक्य की कोई ताकत छीन नहीं सकती है|
प्रेमी मनुष्यों की बातचीत में इतना माधुर्य होता है कि वे जिससे दृष्टि मिलाते हैं उनके मन में सनसनी उत्पन्न कर उसे अपने बस में कर लेते है|
No comments yet.
Leave a comment