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परिवार की दृष्टि से न गिरो

परिवार की दृष्टि से न गिरो
कई बेसमझ अज्ञान महिलाएँ अपने भर्तार और घर की आय-व्यय का विचार न कर, वे विशेष वस्त्रालंकार श्रृंगार की वस्तुओं के लिये मरती हैं, कलह कर बैठती हैं| इसी मनमुटाव के कारण वे शनै: शनै: अपने परिवार और समाज की दृष्टि से गिर जाती हैं|

महिलाओं के लिये पति से बढ़कर कोई दूसरा गहना नहीं| बेटी ! याद रखो, सुख भड़कीले सुन्दर वस्त्रालंकारों में नहीं, सुख है चटक-मटक शान शौकत से बचकर अपने पति की आय के अनुसार जो समय पर मिले, उसे पाकर, संयम में रहने में|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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