सुक्खं खु दीसइ तवोविसेसो,
न दीसई जाइविसेस कोई
न दीसई जाइविसेस कोई
तपविशेष तो प्रत्यक्ष दिखाई देता है, परन्तु कोई जातिविशेष नहीं दिखाई देता
परन्तु मनुष्यों में जिस जातिभेद की कल्पना की गई है – अहंकार के पोषण के लिए अथवा सामाजिक व्यवस्था के लिए विभिन्न कार्यों एवं आजीविका के आधार पर जो अनेक जातियॉं मान ली गयी हैं; वे किसी भी व्यक्ति में दिखाई नहीं देतीं| यदि कोई हरिजन स्नान करके स्वच्छ सुन्दर पोशाक में माथे पर लम्बी चोटी और भाल पर लम्बा तिलक धारण किये हुए कहे; कि मैं ब्राह्मण हूँ तो कौन पहचान सकता है; कि वह हरिजन ही है? कोई नहीं; क्योंकि मनुष्य मात्र की एक ही जाति है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 12/37
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