विहुणाहि रयं पुरे कडं
पूर्व सञ्चित कर्म रूप रज को साफ करो
ज्ञानी कहते हैं कि इस बाह्य स्वच्छता की अपेक्षा आन्तरिक स्वच्छता अधिक आवश्यक है| मन मैला हो तो वह मैले तन की अपेक्षा अधिक घातक होगा| कषायों से मन मैला होता है; इसलिए मन को उनसे दूर रखें|
इसके बाद आत्मा पर विचार करें| पूर्व भव के सञ्चित कर्म उससे चिपके हुए हैं| जिस प्रकार हम दो-तीन बार झाडू लगाकर मकान के फर्श की धूल साफ करते हैं, उसी प्रकार अहिंसा, संयम और तप के द्वारा हमें आत्मा पर लगी हुई कर्म रूप रज (धूल) साफ करनी चाहिये|
- उत्तराध्ययन सूत्र 10/3
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