जं जारिसं पुव्वमकासि कम्मं,
तमेव आगच्छति संपराए
तमेव आगच्छति संपराए
पहले जो जैसा कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है
लकड़ी की उस गेंद को यदि गीली मिट्टी से लपेटा जाये, फिर कपड़ा लपेटा जाये और फिर से उस पर गीली मिट्टी की परत चढ़ाई जाये – इस प्रकार यदि आठ बार उस पर परतें चढ़ाई जायें; तो वह पानी में डूब जायेगी|
यही बात आत्मा के लिए है| वह भी पूर्व जन्म में किये गये आठ कर्मों के आवरणों से लिपटी हुई होने से संसार में डूबी हुई है|
जन्म लेने के बाद कर्म क्रमशः उदय में आते रहते हैं| उनके अनुसार शुभाशुभ फल उपस्थित होते रहते हैं और प्राणी सुख-दुःख का अनुभव करता रहता है|
कहने का आशय यह है कि आत्मकल्याण के लिए हम धर्म का उपार्जन ही करें, कर्मों का बन्धन नहीं|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/5/2/23
Beautiful explanation ????????????????????????Jai Jinendra????????