से असइं उच्चागोए, असइं नीआगोए,
नो हीणे नो इहरित्ते
नो हीणे नो इहरित्ते
यह जीव अनेक बार उच्च गोत्रमें और अनेक बार नीच गोत्र में जन्म ले चुका है; परन्तु इससे न कोई हीन होता है, न महान|
महत्ता का उच्च गोत्र से कोई सम्बन्ध नहीं है| मनुष्य महान बनता है – पवित्र कार्यों से – सदाचार से और नीच बनता है – अपवित्र कार्यों से – दुराचार से | इस प्रकार उसका आचरण ही वास्तव में उसकी उच्चता या नीचता को निर्धारित करनेवाला निर्णायक है| कौन नहीं जानता कि उच्च गोत्रीय रावण, कंस, दुर्योधन आदि निन्दनीय हैं और नीच गोत्रीय मेतार्य और हरिकेशी मुनि वन्दनीय है! तब क्या महत्त्व रखते हैं – ये उच्च नीच गोत्र?
- आचारांग सूत्र 1/2/3
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