श्री अभिनंदन जिन स्तवन
राग : बागेश्चरी
तारो मोहे स्वामी ! शरण तुम आयो…!
काळ अनंतानंत भमत में,
अब तुम दरिसण पायो.
…१
तुं शिव नायक सब गुण क्षायक१,
नायक बिरूद घरायो.
….२
लायक जाणी प्राण-मन भायो
पाय कमल चित्त लायो.
…३
तुं ही निरंजन जन-मन रंजन,
खंजन नैन सुहायो.
…४
गुण विलास प्रभु जिन अभिनंदन,
वंदनकुं ललचायो.
…५
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
No comments yet.
Leave a comment