श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन
राग : दिलरंजन जीनराजजी…(ये जींदगी उसीकी है)
सप्तम जिनवर सेवीए,
श्री सुपार्श्व जिनराज सलूणा
अंतरजामी छो महारा रे,
आतमना आधार सलूणा.
…१
जिम जिम अरिहंत सेवीए रे,
तिम तिम प्रगटे ज्ञान सलूणा
ज्ञान विना समकित नहीं रे,
समकित सुखनुं मूळ सलूणा.
….२
ज्ञान अनंतु पामवा रे,
पूजो अरिहंत भूप सलूणा
भाव सहित प्रभु पूजतां रे,
केई हुआ तद्रूप सलूणा.
…३
जल चंदन पूष्प धूपनी रे,
दीप अक्षत नैवेद्य सलूणा
फल पूजा करतां थकां रे,
मोक्ष तणुं फळ होय सलूणा.
…४
प्भव अनंता भमतां थकां रे,
पाम्यो प्रभु देदार सलूणा
मोहन पद पंकज सेवतां रे,
हेम वरे शिवनार सलूणा.
…५
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
excellent