श्री अभिनंदन जिन स्तवन
राग : भैरवी
प्रभु ! तेरे नयनकी बलिहारी.
याकी शोभा विजीत तपसा,
कमल करतु है जलचारी;
विधुके शरण गयो मुख-अरिके,
वनथें गगन हरिण हारी.
…प्र.१
सहजहि अंजन मंजुाल निरखत,
खंजन गर्व दियो दारी;
छीन लही है चकोरकी शोभा,
अग्नि भखे सो दु:ख भारी
…प्र.२
चंचलता गुण लीयो मीनको,
अलि ज्युं तारी हे कारी;
कहु सुभगता केति इनकी,
मोही सबही अमरनारी.
…प्र.३
घुमत है समता रस माते,
जैसे गजवर मदवारी;
तीन भुवनमें नही कोई नीको,
अभिनंदन जिन अनुकारी.
…प्र.४
मेरे मन तो तुंही रूचत है,
परे कोण परकी लारी;
तेरे नयनकी मेरे नयनमें,
जश कहे दीओ छबी अवतारी.
…प्र.५
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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