श्री ऋषभदेव (आदिनाथ) जिन स्तवन
राग : प्रभातीयु
जाग तुं जाग तुं आतमा माहरा,
भगवंत भेटीए सुखकारी;
शेत्रुंजामंडन मरूदेवानंदन,
आदिजिन वंदिए चित्त धारी.
…जाग.१
पांचसे धनुष्यनी, रत्नमय जाणीए,
भरतराये प्रतिमा भरावी;
दु:षमाकाळ विचारी पश्चिम दिशि,
महागिरि कंदरामां वसावी.
….जाग.२
पांचसो धनुष्यनी शोभना मूरति,
जे भवि पुण्यथी दर्श पावे;
बहुभवसंचित पापना ओघने,
टाळी त्रीजे भवे सिद्धि जावे.
…जाग.३
इन्द्रियवश करी चित्त निर्मलधरी,
विधि सहित नाभिनंदन पूजीजे;
भावना भाविये चित्तमां लावीये,
दुहो मनुजभव सफल कीजे.
…जाग.४
प्रदक्षिणा देइ पागे चढी वंदीए,
चैत्य गिरिराज शेत्रुंजा केरा;
विजय जिनेन्द्रसूरि पयकमल सेवता,
अमर कहे भांगीए भवना फेरा.
…जाग.५
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
No comments yet.
Leave a comment