भाव : मन… चंचलता मननी निर्मलता मननी निश्चलता
प्रसन्नचंद्रनी ७मी नरक अनुत्तर विमान.. ने केवलज्ञाननी साधना
प्रणमुं तुमारा पाय,
प्रसन्नचंद्र प्रणमुं तुमारा पाय;
तुमे छो मोटा ऋषिराय…
राज छोडी रळीयामणुं रे, जाणी अथीर संसार,
vवैरागे मन वाळीयुं रे, लीधो संयम भार
स्मशाने काउस्सग्ग रही रे, पग उपर पग चढाय;
बाहु बे उंचा करी रे, सूरज सामी दृष्टि लगाय
दुर्मुख दुत वचन सुणी रे, कोप चढ्यो तत्काळ;
मनशुं संग्राम मांडीयो रे, जीव पड्यो जंजाळ.
श्रेणीक प्रश्न पूछे ते समे रे, स्वामी एहनी कुण गति थाय;
भगवंत कहे हमणां मरे तो, सातमी नरके जाय.
क्षण एक आंतरे पूछीयुं रे, सर्वारथ सिद्ध विमान;
वागी देवनी दुंदुभी रे, ऋषि पाम्या केवलज्ञान.
प्रसन्नचंद्र ऋषि मुगते गया रे, श्री महावीरना शिष्य;
रूपविजय कहे धन्य धन्य, दीठा ए प्रत्यक्ष.
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