राग : लख्युं होय ते थाय भविष्यमां सजनवा वैरी हो गइ हमार
भाव : कर्मसत्तानी अमाप ताकात अने ए ताकातने पडकारती धर्मसत्ता
करवुं होय ते थाय करमने करवुं होय ते थाय;
जीवे जाच्युं काम न आवे,
धार्युं निरर्थक जाय.
पांडव पांच महा बलवंता,
ने चरमशरीरी कहाय;
वनमांही ते रडवड्या ने वली (२)
दु:खे बार वर्ष जाय.
ज्यां जळ त्यां थळ, थळ त्यां जळ छे,
भरती ओट भराय;
रंक राय थइ मन मलकावे (२)
राजा रंक थइ जाय.
कृष्ण वासुदेव त्रिखंड राणो,
जेने पग मूके खमा खमा थाय;
जराकुमरथी पगे विंधाणो (२)
त्यारे जल विना जीव जाय..
घरमां जेने खावा खूटयुं छे,
अने लोकोनी ठोकरो खाय;
एवो पण जो नृप बने तो (२)
लाखोथी वंदाय
सुभद्रा जेवी अति सतीना,
माथे कलंक पड्युं धाय;
तांतणे चालणीथी जळ काढी (२)
द्वार उघाडी पंकाय.
जे घर घोडा हाथी झुले,
परिवार गण्यो न गणाय;
खाली ते तो खंडेर थया ने वली (२)
कूतरां त्यां तो वीआय.
राजा हरिश्चंद्र राज्यनो धारी,
ज्यारे प्रतिज्ञामां पकडाय;
वनमां कुमरे खावा माग्युं त्यारे (२)
ते पण आपी न शकाय.
जे तन रंग विजळी सम झलके,
नेत्र ज्यां जई ठराय;
ते तन रोगे पीडियां त्यारे (२)
कोइथी देखी न शकाय.
सनत्कुमार चक्री रूप देखो,
जेने देवता जोवा आय;
गर्व र्क्यों त्यारे पलकमां पलट्यो (२)
थइ गइ रोगमय काय.
सूरिकमल चरणोना प्रतापे,
लब्धिथी करम कळाय;
वीतरागना वचन प्रमाणे (२)
चाले तो तेथी छूटाय.
No comments yet.
Leave a comment