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श्रावक के दैनिक 6 कर्तव्य

श्रावक के दैनिक 6 कर्तव्य

जिनेन्द्रपूजा गुरुपर्युपास्तिः
सत्वानुकम्पा शुभपात्रदानम्|
गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य
नृजन्मवृक्षस्य फलान्यमूनि॥
पर्युषण के दिन यानी कि आत्माके लिए महोत्सव के दिन| इन दिनोमें विशिष्ट आराधना यानी कि आत्मा के लिए मिष्टान्न भोजन| लेकिन प्रसंग पर मिष्टान्न भोजन करनेवाला सामान्य से हररोज मिष्टान्न नहीं खाता, उसका मतलब उपवास नहीं करता… दाल, चावल, रोटी और सब्जी तो जीमता ही है| उसी तरह पर्व दिनों में विशिष्ट आराधना करनेवाले को अन्य दिनों में धर्मका त्याग नहीं करना है| किन्तु दैनिक करने योग्य छः कर्तव्य तो अवश्यमेव करना है| तो ही वह वास्तविक श्रावक बनता है, और तब ही मिले हुए मानवभवरूपी कल्पवृक्षके अमृतमय फलों की प्राप्ति कर सकता है| ये छः कर्तव्य हैं -

1. परमात्मा की पूजा
2. गुरुभगवंत की उपासना
3. जीवदया
4. सुपात्रदान
5. गुणानुराग
6. जिनवाणी श्रवण

1. भगवान की पूजा :- जिसको ऐसी संवेदनाएँ होती हैं कि ‘‘हमारे जीवनमें जो कुछ भी शुभ दिखाई देता है उसमें प्रभुकी कृपा का ही प्रभाव है|’’ जिसे ऐसा लगता हो की एकेन्द्रिय में सब्जी-तरकारी में किलो के भावमें बिकने वाले और जीते जी कटने वाले हम आज जो भी ऊँचाई पर पहुँचे हैं उसमें प्रभु की कृपाने ही महत्त्व की भूमिका निभाई है, वह कृतज्ञभावसे और प्रभुकी करुणाको और तीव्रता से प्राप्त करने के लिए अष्टप्रकारी इत्यादि रूपमें प्रभुकी पूजा अवश्यमेव करता ही है| पूरे जगत का स्पर्श करनेवाला व्यक्ति, करुणानिधान प्रभुको स्पर्श किये बिना ही रह जाये तो उसके जैसी करुणता अन्य क्या हो सकती है ? इसलिए प्रतिदिन परमात्मा की पूजा करना परमावश्यक है|

2. गुरुउपासना :- देवतत्त्व और धर्मतत्त्व का परिचय कराके हमें दोनोंके साथ जोडनेवाले, हमें सतत धर्म की प्रेरणा देनेवाले, हमारी वेदना को स्वयं की संवेदना बनाकर सही आश्वासन देनेवाले, सुपात्रदान का लाभ देनेवाले, हमारे धर्मदाता-धर्मपोषक-धर्मवर्धक गुरुभगवंत की उपासना इस तरह करनी चाहिए कि जिस तरह विद्यासाधक आकाशगामिनी विद्यादाता सिद्धयोगी की अप्रमत्त भावसे उपासना करता है|

3. जीवदया :- विश्व के तमाम जीव पर करुणा के कारण तीर्थंकर बने हुए भगवानके अनुयायी का हृदय जगतके सभी जीवोंके प्रति करुणासे लबालब भरा होता है| फालतू खर्च बंद करके उन अबोल पशु-पक्षीओं को जीवनदान, चारा देता है| चींटी-मकौड़े के मॉंद के पास आटा भुरभुराता है, गरीबों के प्रति भी अनुकंपाका भाव रखता है और इस तरह अपने परलोक को सलामत, समृद्ध और सभी की ओरसे शुभ मनोभाव प्राप्त हो ऐसा बनाता है| और वही जीवोंको कल्याणके मार्गमें जोड़ सकता है|

4. सुपात्रदान :- दानसे नयसार प्रभु वीर बनें, धनसार्थवाह ऋषभदेव भगवान बने, ग्वाला पुत्र संगम शालिभद्र बना| साधुभगवंत को वस्त्र-पात्र-आहार-शय्या इत्यादि के दानसे श्रावकका दिन कल्पवृक्ष की प्राप्ति की तरह उत्कृष्ट बन जाता है| प्रतिदिन भोजन करने से पहले सुपात्रदान, अनुकंपा और जीवदया के कार्य करनेवाला भविष्यमें अनेक जीवोंका आश्रयदाता विशिष्ट पुरुष बनता है|

5. गुणानुराग :- प्रतिदिन अरिहंत से लेकर मार्गानुसारी पर्यन्त के प्रत्येक जीवके सुकृतकी, सद्गुणों की अनुमोदना करनी चाहिए| अनुमोदना के प्रभावसे अपनी आत्मामें उनके गुणोंका प्रकटी करण होता है| उस गुणवानका, सुकृत करने वाले का सुकृत के लिये उत्साह बढ़ता है| अन्य को भी आलंबन, आदर्श और प्रेरणा मिलती है| जीभ पवित्र बनती है| पाप-निंदा और विकथासे दूर रहने का होता है| प्रतिदिन एक बार या तीन बार परिवार, पडौसी और साधर्मिक सहित शक्य ऐसे सभी के गुण-सुकृत की अनुमोदना करने की आदत डालनी चाहिए और इस तरह उनके सुकृतका पूर्ण लाभ प्राप्त कर लेना चाहिए|

६) जिनवाणी श्रवण :- गुरु मुखसे जिनवाणी सुननेवालों को ही मनुष्य भव की महत्ता, प्रत्येक क्रिया का मूल्य, उसके लिए आवश्यक विधि की जानकारी, अविधि का नुकसान, जीवनमें स्वस्थता, शांति, समता और समाधिकी चाबी, धर्मकी आवश्यकता इत्यादि की जानकारी मिलती है, चित्त निर्मल होता है| यदि सभी धर्म विविध वृक्ष समान हैं, तो जिनवाणी श्रवण उन तमाम वृक्षोंको हरे रखनेवाली जलधारा समान है| कईं पापीओंके जीवन का परिवर्तन जिनवाणीश्रवण से हुआ है| इसलिए प्रतिदिन जिनवाणी का श्रवण करना ही चाहिए|

इस तरह प्रतिदिन श्रावक के छः कर्तव्य करने योग्य हैं| जैन श्रावक बनकर यदि श्रावक के कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे तो हम धर्मको वफादार कैसे कहलायेंगे ? इसलिए अवश्य इन कर्तव्योंका पालन करने की आदत डालें | समझ लीजिए…. श्रावकके जीवन में संसार नही किन्तु शासन, धन नहीं किन्तु धर्म मुख्य होता है| श्रावकने यह मनुष्यभव, भविष्यके अनंतकालको बिगाडने के लिए नहीं, सुधारने के लिए पाया है|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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1 Comment

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  1. Brijesh Kumar
    जुल॰ 19, 2013 #

    I am Benifited With your Jainism Discourses
    Pls. Send me all such Discourses in Hindi I am obliged to Study them
    Brijesh Kumar Mourya Thank you Jay Jinendra.

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