post icon

आंखें जहां भी तुम देखो

आंखें जहां भी तुम देखो
आंखें जहां भी तुम देखो ऐसी हो जाएं शुद्ध कि वहीं परमात्मा दिखाई पड़े

इंद्रियां भी उसी के लिए द्वार बन सकती हैं| और हम इंद्रिय प्रार्थना में संलग्न हो सकती है| और उसी को हम कलाकार कहेंगे जो सारी इंद्रियों को परमात्मा में संलग्न कर दे; जो आत्मा से ही न पुकारे, देह से भी पुकारे| परमात्मा की रोशनी प्राणों में ही न जगमगाए, रोएं-रोएं में जगमगाए|

आत्मा तो उसमें डूबे ही डूबे, यह देह भी उसी में डूब जाए| तुम्हारे प्राण तो उसमें नहाएं ही नहाएं, तुम्हारा तन भी उसमें नहा ले|

तुम्हारी श्‍वास-श्‍वास उसमें लिप्त हो जाए| अभी रूप जहां दिखाई पड़ता है वहां वासना पैदा होती है-यह सच है| अब दो उपाय हैं; रूप देखो ही मत, ताकि वासना पैदा न हो; और दूसरा उपाय है कि रूप को इतनी गहराई से देखो कि हर रूप में उसी का रूप दिखाई पड़े, तो प्रार्थना पैदा हो|

इंद्रियों को पूरी त्वरा देनी है, तीव्रता देनी है, सघनता देनी है| इंद्रियों को प्रांजल करना है, स्वच्छ करना है, शुद्ध करना है| इंद्रियों को कुंवारा करना है|

आंखें ऐसी हो जाएं शुद्ध कि जहां भी तु देखो वहीं परमात्मा दिखाई पड़े|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR