एक पेड़ पर चिड़िया अपनी मस्ती में चहक रही थी| उस पेड़ के नीचे एक भक्त विश्राम कर रहा था| चिड़िया की चहक सुनकर भक्त बोला, ‘‘अहा ! चिड़िया भी भगवान को याद कर रही है|’’
एक बनिये ने भक्त की यह बात सुनकर पूछा, ‘‘सो कैसे?’’
भक्त बोला, ‘‘चिड़िया बोल रही है – राम- सीता, दशरथ| राम-सीता, दशरथ|’’ तब बनिया बोला, ‘‘नहीं, यह तो कह रही है – धनिया, मिर्च, अदरक| धनिया, मिर्च, अदरक|’’ इतने में एक पहलवान वहॉं आ गया| उसने कहा, ‘‘यह चिड़िया तो व्यायाम का महत्त्व बता रही है| यह कह रही है – दण्ड, कुश्ती, कसरत| दण्ड, कुश्ती, कसरत|’’
वहीं एक बुढिया एक ओर बैठी चरखा कात रही थी| उसने कहा, ‘‘अजी ! यह चिड़िया तो कह रही है – चरखा, पूनी, चमरख| चरखा, पूनी, चमरख|’’
उन सबकी इस प्रकार बातें चल रही थीं कि एक मौलवी साहब वहॉं आ गये| उन्होंने कहा, ‘‘अरे यह चिड़िया तो अपने बनाने वाले खुदा को याद कर रही है| यह कह रही है अल्लाह तेरी कुदरत| अल्लाह तेरी कुदरत|’’
इस प्रकार भिन्न-भिन्न लोगों ने अपनी- अपनी समझ के अनुसार भिन्न-भिन्न कल्पनाएँ कीं; पर चिड़िया तो केवल चहक रही थी| उसे इनमें से कोई भी अर्थ मालू नहीं था|
सच ही है – जाकी रही भावना जैसी| प्रभु मूरत देखी तिन जैसी|
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Thanh You so much for your kind words. Also please help us spread the word.