स्त्री को साहित्य, विज्ञान और दर्शन जानने की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी कि उसे सु-माता बनने की रीति जानने की| जिस जाति में सुमाताओं की संख्या अधिक है, वह जाति उतनी ही उत्तम और श्रेष्ठ है| मानव जीवन के निर्माण में माता का विशेष हाथ रहता है| मॉं का पुत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है| यह जानना हो तो प्रसिद्ध महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़िये| Continue reading “प्रसव विज्ञान” »
प्रसव विज्ञान
महामंत्री अभयकुमार
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दोहृद (दोहला) का फल
कल्पसूत्र में सिद्धार्थ त्रिशला के जिस दोहृद (इच्छा) को पूर्ण न कर सके थे, उसे पूर्ण करने के लिए स्वयं इन्द्र महाराज को हार खाकर इन्द्राणी के कुण्डल देने पड़े थे|
यथा तथा दैवयोगा-द्दोहृदं जनयेत् हृदि
श्री गणधर भगवान की देशना
इमम्मि अदुवा परत्था|
प्रिय महानुभावो !
आलसी और स्वार्थी मनुष्य केवल धन से अपना संरक्षण नहीं कर सकते हैं| उन्हें न यहां शांति मिलती है, न परलोक में|
मानव सुख की खोज करने चला है, पर मार्ग में भटक गया है| उसे अपने लक्ष्य का पता है, पर राह भूल गया है| मानव ने सुख देखा है पैसे में, उसके श्रम का केन्द्र हो गया है पैसा| आज मनुष्य पैसे के लिए अपनी मानवता बेंच रहा है|
भाई, भाई का नहीं, मॉं बेटी की नहीं, पिता पुत्र का नहीं, पति पत्नी का नहीं, मालिक मजदूर का नहीं, सेठ मुनिम के आपस में लड़ाई झगड़े, मन मुटाव का कारण है पैसा| कई क्रोधी निर्दयी मनुष्य मानवता को भूल एक दूसरे के प्राण तक ले लेते हैं| आज मानव को पैसे से जितना मोह है उतना मानव से नहीं| उसके दिल में प्रेम नहीं, पैसा है| क्योंकि उसने अपने सुख की खोज पैसे में की है| Continue reading “श्री गणधर भगवान की देशना” »
दृढ संकल्प का चमत्कार
आत्मा में अपार शक्ति और अतुल बल है| इसका विकास और उपयोग करना भी एक कला है| इसका साधन है इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प|
यदि आप विश्वविख्यात मानव, लोकप्रिय नेता, प्रकाण्ड विद्वान और श्रीमंत बनना चाहते हैं, तो अपनी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प को ठोस बनाएं| वर्ष में आठ हजार, छ: सौ चालीस घण्टे होते हैं| Continue reading “दृढ संकल्प का चमत्कार” »
श्री हेमचंद्राचार्य
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आत्मा का स्वाभाविक धर्म – सम्यक्त्व
सम्यक्त्व का अर्थ है, निर्मल दृष्टि, सच्ची श्रद्धा और सच्ची लगन| सम्यक्त्व ही मुक्ति-मार्ग की प्रथम सीढ़ी है| जब तक सम्यक्त्व नहीं है, तब तक समस्त ज्ञान और चारित्र मिथ्या है| जैसे अंक के बिना बिन्दुओं की लम्बी लकीर बना देने पर भी, उसका कोई अर्थ नहीं होता, उससे कोई संख्या तैयार नहीं होती, उसी प्रकार समकित के बिना ज्ञान और चारित्र का कोई उपयोग नहीं, वे शून्यवत् निष्फल है| अगर सम्यक्त्व रूपी अंक हो और उसके बाद ज्ञान और क्रिया (चारित्र) हो तो जैसे एक के अंक पर प्रत्येक शून्य से दस गुनी कीमत हो जाती है, वैसे ही ज्ञान और चारित्र-दान, शील, तप-जप आदि मोक्ष के साधक होते हैं| मुक्ति के लिये सम्यग्दर्शन की सर्वप्रथम अपेक्षा रहती है| Continue reading “आत्मा का स्वाभाविक धर्म – सम्यक्त्व” »
अशिक्षित महिला सदा पति के हृदय में खटकती है
मदनसेना ! पुरुष हृदय किसी बात से उतना अप्रसन्न, दु:खी नहीं होता, जितना कि अशिक्षित स्त्री के व्यवहार से| वह चाहता है कि स्त्री कपड़े-वस्त्र-अलंकार ठीक तरह से पहने| समय समय पर हंसना, बोलना जाने| घर की प्रत्येक वस्तु साफ-स्वच्छ सजा कर रखे| आवश्यक वस्तुओं को यथास्थान व्यवस्थित ढंग से रखे, ताकि समय पर इधर-उधर दौड़धूप न करना पड़े| झगड़ालू न हो| Continue reading “अशिक्षित महिला सदा पति के हृदय में खटकती है” »