1 0 Tag Archives: क्षमापना
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क्षमा-याचना के अवसर पर

क्षमा याचना के अवसर पर

१) खुदको ही अपराधी मानना…दोनों को नहीं|
२) मनसे अपने अपराधों का स्वीकार करना|
३) अपनी भूलके कारण जिसको सहना पड़ा है, उसकी उदारता और सहनशक्ति की प्रशंसा करना|
४) ‘‘फिरसे ऐसी भूल नहीं होगी’’ ऐसे मानसिक संकल्प के साथ उस तरह का वचन देना|
५) जिसके पास क्षमा-याचना करते हो वह शायद तिरस्कार करे या फिटकार दे, तब भी स्वस्थ रहना चाहिए और बिचार करना कि मेरी भूलके कारण उसका दिल कितना जख्मी हुआ होगा कि दिलमें लगी हुई चोट के कारण मुझे इतना धिक्कार दे रहे हैं| अरे ! मैंने कैसा दुष्कृत किया|
६) उस समय या बादमें दूसरा कोई आपकी क्षमा मांगने की हिंमत को दाद दे और ‘फिर भी क्षमा देनेवाले ने कैसा तिरस्कार किया’ कहकर उसकी निंदा करे, तब उसे वास्तविकता बताकर खुले दिलसे ईकरार करना की ‘भाई ! मैंने निर्मम बनकर मेरे अपराधोंसे उनके दिलको जो ठेस पहुंचाई है, उसके सामने यह तिरस्कार बहुत ही सामान्य, गिनती में लेने लायक नहीं है|’ ऐसे बिचारों से मनको क्षमामय बना दें| Continue reading “क्षमा-याचना के अवसर पर” »

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क्षमापना – एक पर्वाधिराज

क्षमापना   एक पर्वाधिराज
क्षमापना तो पर्वाधिराज के प्राणसमान हैं| जिस तरह हज़ार कि.मी. रेल की पटरी से एक इँच पटरी भी यदि तुट जाये, तो ट्रेन लुढ़क जाती है उसी तरह मनमें एक जीवके प्रति भी यदि द्वेष का अंश रह गया, तो आपकी आराधनाकी पूरी ट्रेन ही लुढ़क जायेगी| जिस तरह कारमें आगे देखनेवाला अकस्मात से बच जाता है, ठीक उसी तरह भूतकाल को भूलकर जो व्यक्ति भविष्यमें आगे बढ़ना चाहता है, वह ही दुर्गतिओंसे बच सकता है| Continue reading “क्षमापना – एक पर्वाधिराज” »

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क्षमा-याचना – आत्मा की शुद्धिकरण

क्षमा याचना   आत्मा की शुद्धिकरण
पॉंच कर्तव्यों में मुख्य कर्तव्य है ‘‘क्षमा’’| और ग्यारह कर्तव्यों में मुख्य कर्तव्य है ‘आलोचना शुद्धि द्वारा आत्मशुद्धि’| ‘‘जीवोको माफ कर दो और आत्मा को साफ कर दो|’’ यह ही पर्वाधिराज पर्युषण का सूत्र है| इसलिए हम कमसे कम इन पर्वदिनों तक भी अपने मन के अहंकार को दूर किनार करके सालभरमें जिनके भी साथ कटु प्रसंग बने हैं उन सभी व्यक्ति के प्रति क्षमा-याचना करके ‘‘मिच्छामि दुक्कडम्’’ का कर्णमधुर हृदयस्पर्शी झंकार सुनाए तो उन को जो शाता और प्रसन्नता की अनुभूति होगी, उससे पुण्य का लाभ तो होगा ही किन्तु साथ साथ हमें भी ‘‘हम इतने तो सज्जन हुए’’ ऐसी भावना अपूर्व तुष्टि देने में निमित्त बनेगी| जी हलका होगा, मन उदार होगा और मुक्त मन के आनंद की अनुभूति होगी| ख्याल रखना ! अहम् और इस आनंद की बिलकुल नहीं पटती| हॉं! आनंद की किंमत ही है अहंत्याग… अभिमान का विसर्जन| Continue reading “क्षमा-याचना – आत्मा की शुद्धिकरण” »

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क्रोध – एक अग्नि

क्रोध   एक अग्नि
एकबार आये हुए क्रोध में कितने सालों के तप और संयम को भस्मीभूत करने की ताकात है ? यदि कोई ऐसा प्रश्न करें, तो जवाब यह है कि- तप और संयम का उत्कृष्ट काल है देशोन पूर्व क्रोड वर्ष| इतने दीर्घ कालमें तप और संयम की जो साधना कर सकते हैं, उस साधना को भस्मीभूत करने की ताकत एकबार के आये हुए क्रोध में है| Continue reading “क्रोध – एक अग्नि” »

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क्षमा-प्रदान करते समय

क्षमा प्रदान करते समय

सिकंदरने युद्धमें पौरस को हराकर बंदी बनाया| पौरसको सिकंदर के सामने लाया गया| तब सिकंदरने पौरस को कहा- ‘‘कहो ! आपके साथ कैसा व्यवहार करें?’’ तब पौरसने निर्भयता से कहा कि एक राजा का दूसरे राजा के साथ जैसा व्यवहार होना चाहिए, ठीक वैसा ही व्यवहार कीजिए| सिकंदर इस जवाब से प्रसन्न हो गया|

क्षमा-याचना करने वाली दोषित व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ? इस प्रश्न का जवाब यह है कि स्वयंको दोषित समजनेवाला जिस तरह व्यवहार करता है, ठीक उसी तरह व्यवहार करना चाहिए| तात्पर्य यह है कि स्वयंको दोषित माननेवाला ही अन्य के दोषको मामूली समजकर सरलतासे, सहजतासे क्षमा प्रदान कर सकता है| Continue reading “क्षमा-प्रदान करते समय” »

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क्षमा कैसे रखनी चाहिए?

क्षमा कैसे रखनी चाहिए?

महत्वपूर्ण बात यह है कि अनचाही-अप्रिय घटना घटें तब क्षमा कैसे रखें ? ऐसे समय पर क्षमा न रख सके और गुस्सा आ गया, मन बेकाबू हो गया और क्रोध में अंधा बनकर कुछ ऐसे गलत कदम उठा लिये कि जिससे होनेवाला नुकसान जीवनभरमें भरपाई न कर सकें और क्षमा मांगने-देने का मौका भी न आये| या तो क्षमा मांगने-देने पर भी वह नुकसान भरपाई न कर सके तो जीवनभर पछताना पड़ेगा|

इसलिए ही सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे प्रसंग पर क्रोध उत्पन्न ही न हो या तो उत्पन्न हुए क्रोध को निष्फल कर दो | क्योंकि क्रोध एक ऐसा पागलपन है कि क्रोधित व्यक्ति का हर कदम उसे नुकसान के मार्ग पर ही आगे ले जायेगा| Continue reading “क्षमा कैसे रखनी चाहिए?” »

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क्षमा-याचना – केवलज्ञान की सीढ़ी

क्षमा याचना   केवलज्ञान की सीढ़ी
जो व्यक्ति मृगावती या तो चंडरुद्राचार्य के शिष्य की तरह निर्विवाद क्षमा-याचना करते हैं, वे केवलज्ञान पाते हैं| धर्मसागर उपाध्याय की तरह छोटे-बड़े का भेद भूलकर क्षमा याचना करनेवाला सर्वत्र शांति और समाधि की सौरभ को फैला सकता है और संवत्सरी प्रतिक्रमण जैसी महान धर्मक्रिया को प्राणवन्त बना सकता है| Continue reading “क्षमा-याचना – केवलज्ञान की सीढ़ी” »

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क्षमा – सच्चा अमृत

क्षमा   सच्चा अमृत
‘‘क्षमा’’ ही सच्चा अमृत है’’, इस बात को सभी विद्वानोंने मान्य कर दी| बस, संवत्सरी पर्व का आलंबन लेकर शक्कर – इलायची के पानी से भी अधिक मधुरतावाले क्षमामृत के प्याले ही भर भर के पीओ और पिलाओ| Continue reading “क्षमा – सच्चा अमृत” »

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