post icon

मन क्या है?

मन क्या है?
इसे न तो तुम्हारी तेज आँखे देख सकती हैं न हाथ ही उसे अपने आधीन रख सकते हैं| मन का न कोई रुप है, न रंग, न आकार| वह विचित्र है, सब देखता है, सब सुनता है| हम जिस शक्ति द्वारा सुख-दु:ख का अनुभव करते हैं उसी अदृश्य शक्ति का नाम है मन|

मनुष्य के लिए विजय प्राप्त करने के सबसे बड़े दो साधन हैं| पहली मन शक्ति और दूसरी तलवार| लेकिन मनशक्ति के सामने तलवार निर्बल सिद्ध हो चुकी है| महाराज श्रीपाल के जीवन में सफलता की जड़ है मन| वे मन की शक्ति के सम्राट् थे| उनके मन में, रोम रोम में श्री सिद्धचक्र की भक्ति थी, वे आश्विन और चैत्र में केवल नौ दिन बीस बीस माला गिन कर चुप नहीं बैठते थे| वे महान् घातक अन्तरंग शत्रु ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, घमण्ड, संदेह और निराशा से सदा सावधान रहते थे| पाठक गण आगे पढ़ेंगे, श्रीपाल पर धवल सेठ ने जब जब आघात-प्रत्याघात किये हैं, तब तब वे मनशक्ति के बल से ही विजयी हुए हैं|

आज सौ में से निन्यानवे स्त्री-पुरुष ऐसे हैं जो श्री सिद्धचक्र आराधना से दूर है, इस के रहस्य से अनभिज्ञ हैं| कुछ स्त्री-पुरुष वर्ष में दो बार नवपद ओली करते अवश्य हैं, किन्तु केवल तप से शरीर सुका कर रह जाते हैं| ओली करने के बाद उनके दैनिक जीवन में परिवर्तन पैदा नहीं होता है| मन पर संयम न रखने के कारण खतरनाक शत्रु, ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, घमण्ड, संदेह और निराशा से लुट जाते हैं|

ईर्ष्या, क्रोध आदि घातक शत्रुओं से सदा सावधान रहो| श्री सिद्धचक्र की आराधना करो| विनयविजयजी कहते हैं कि मेरा निज का अनुभव है कि जीवन की सफलता का मूल मंत्र है सिद्धचक्र आराधना| मनुष्य भव पा कहीं आप श्री सिद्धचक्र की आराधना से वंचित न रह जॉंय|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR