हम बच्चों को अपने अनुशासन में रखना चाहते हैं, तो हमें भी अपने दैनिक कार्यक्रम व्यवस्थित और यथा समय करना आवश्यक है| आपके नियमित आचरण से बच्चों को सुन्दर प्रेरणा मिलती है| आप प्रात: काल उठ कर अपने बड़े बूढ़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, सामायिक, प्रतिक्रमण कर नवकारसी, पोरसी, पचक्खाण करते हैं, जिन मंदिर दर्शन कर ही चाय दूध भोजन करते हैं, तो आपके बच्चे भी नि:सन्देह ठीक वैसा ही अनुकरण करेंगे| यदि आप पक्के रहे तो ! अन्यथा आप आलसी, व्यसन बन बच्चे को आदर्श बालक के रुप में देखें यह कैसे संभव हो सकता है?
एक व्यक्ति आप पर सौ रुपये मांगता है| आपने कहा कि मैं कल शाम को जरूर दूंगा| दूसरे दिन दरवाजे की खड़खड़ाट सुन आपने मुन्ने से कहा कि जा रे मुन्ना मोदी से बोल दे, कि बाबूजी बाहर गये हैं| मुन्ना बेचारा चुप-चाप खड़ा देखता रहा, यह क्या नाटक बाजी? फिर बाहर से खड़खड़ाट आरम्भ हुई, पिताजी ने आँखे लाल कर बेटे को उत्तर देने को बाध्य किया| भोला भाला मुन्ना ने कहा पिताजी आप तो यही अन्दर हैं ! डंडा उठाकर अरे जाता है या…. न… हीं बच्चा कॉंप उठा उसके हृदय पर छाप लग गई की अपने घराने की यही प्रथा है|
आपकी एक साधारण भूल बच्चों के भविष्य का अभिशाप है| आप जीवन के प्रत्येक कार्य प्रामाणिकता और परिमित ढंग से करें| इसमें कोई संशय नहीं कि बच्चे अपाका अनुकरण न करें| वे अवश्य ही एक दिन आदर्श मानव बनेंगे|
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