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विज्ञान और धर्म

विज्ञान और धर्म

विण्णए समागम्म धम्मसाहणमिच्छिउं

धर्म के साधनों का विज्ञान से समन्वय करना चाहिये

धर्म के साधनों का विज्ञान से समझौता होना चाहिये और विज्ञान के साधनों का धर्म से| इस प्रकार धर्म से विज्ञान का सम्बन्ध जुड़ना चाहिये; दोनों का समन्वय होना चाहिये| दोनों परस्पर एक-दूसरे के पूरक बनें – सहयोगी बनें, विरोधी न रहें| इसकी जिम्मेदारी वैज्ञानिकों पर भी है और धर्मात्माओं पर भी|

वैज्ञानिक ऐसे ही आविष्कार करें, जिनसे मानवसमाज की सामूहिक रूप से सुखवृद्धि हो| वे हिंसक शस्त्रों का निर्माण न करके सुख सामग्री जुटानेवाले यन्त्रों का निर्माण करें| अपना कार्य विश्‍वप्रेम की भावना से करें|

धर्मात्माओं को भी चाहिये कि विज्ञान को वे अपना सहयोगी बनायें| उसे शत्रु नहीं, मित्र समझें| यदि बाढ़ के कारण कोई गॉंव बह गया हो-कहीं ज्वालामुखी फट पड़ा हो या कोई क्षेत्र अकाल पीड़ित हो; तो रेडियो द्वारा तत्काल इसके समाचार पूरे देश में फैलाये जा सकते हैं और सहायता-सामग्री एकत्रित करके वायुयानों द्वारा वहॉं पहुँचाई जा सकती है| इस प्रकार विज्ञान के द्वारा परोपकार धर्म का भी पालन किया जा सकता है|

- उत्तराध्ययन सूत्र 23/31

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1 Comment

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  1. Jashvant Shah
    मार्च 4, 2013 #

    Jai jinendra. Regarding Science and knowledge. The science of the modern world is having its own limitations.It deals with materialistic world. While religion deals with what I call as non-matter entity.The scope of so called science is between the birth and the death.It does not deal beyond these two limited i.e. before birth and after death.While spiritual religion has no limits.So the word “Vigyan” in this sutra does not apply to the science that is commonly talked of.The science referred in the sutra is about the science of the soul.

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