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दुष्कर तपस्या

दुष्कर तपस्या

असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो

तपश्‍चरण तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है

तप दो प्रकार का होता है – अभ्यन्तर और बाह्य| बाह्य तप दिखाई देता है; इसलिए यह तप व्यक्ति को शीघ्र विख्यात कर देता है; परन्तु अभ्यन्तर तप से ऐसा नहीं होता|

बाह्य तप के छह प्रकार हैं – अनशन (उपवास), ऊनोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता|

अभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का होता है; – प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और कायोत्सर्ग| इस प्रकार तप कुल बारह प्रकार का होता है, परंतु आजकल पहले प्रकार का बाह्यतप अर्थात् अनशन या उपवास करने वालों को ही लोग तपस्वी समझते हैं, जब कि उसके अतिरिक्त ग्यारह तप और होते हैं और उन्हें करने वाले भी महान् तपस्वी हैं|

इस सूक्ति द्वारा ज्ञानियों ने बतलाया है कि तपस्या किसी भी प्रकार की हो, वह अत्यन्त दुष्कर होती है|

तलवार की धार कितनी तीक्ष्ण होती है ? ऊँगली रखते ही चमड़ी कट जाती है और रक्तस्राव होने लगता है| उस धार पर चलना जितना कठिन है, तपश्चरण भी उतना ही कठिन है|

- उत्तराध्ययन सूत्र 16/38

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