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उद्यापन – साल का नौवां कर्तव्य

उद्यापन   साल का नौवां कर्तव्य
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के, जिनालय के, पढ़ाई के, सामायिक, पौषध आदि के और साधु-साध्वीजी भगवंत के उपकरण इत्यादिको तैयार करके उद्यापन करना चाहिए| संसार में परिभ्रमण करानेवाले साधन को अधिकरण कहते हैं और मोक्षमार्गमें सहायक बनने वाले साधन को उपकरण कहते हैं| कपड़े धोने का डंडा अधिकरण और साधुका दंड उपकरण|

भूतकाल में हम काफी अधिकरण बना चुके, अन्यको दे चुके, उपयोग कर चुके| फिर भी दूसरों के घरमें आये हुए उपभोगके अधिकरणोंको देखकर उसे अपने घरमें बसाने का सिलसिला तो आज भी शुरु ही है ! अधिकरण को घरके शो-केसमें स्थान मिलता है और पूजा की पेटी को जिनालयमें, और प्रतिक्रमण/सामायिकके कपड़े को उपाश्रयमें.. क्योंकि घर पर उसके लिए जगह नहीं है|

शास्त्रो में और सज्झायों में मुहपत्ति इत्यादि एक एक उपकरणके दानकी महिमा का वर्णन किया गया है| इसलिए तप-जप इत्यादि कोई भी विशिष्ट सुकृत के शिखररूप उद्यापन उपकरणभूत सभी सामग्रीको रखकर बाद में उसे जरुरियात वाले गॉंवमें अर्पण करना चाहिए एवं साधु-साध्वीजी भगवंतोंको बहोराना चाहिए| संसारकी डूबोनेवाली सामग्री को पार उतारनेवाली बनाता है यह कर्तव्य| डूबानेवाला लोहा स्टीमर बनके पार पहुँचाता है और मारनेवाला जहर अगर औषध बन जाये तो जीवन देता है| इसलिए उपकरणोंका उद्यापन अवश्य करना चाहिए|

जिनालय के लिए धूपदान, दिया-चिरागदान, अँगलूँछणा इत्यादि, पाठशालाके लिए पुस्तक, सापड़ा इत्यादि, उपाश्रयमें श्रमण-श्रमणी भगवंतो के लिए उपयोगी टेबल, मेज़ इत्यादि उपकरणों को तैयार करानेवाला, दर्शन-ज्ञान-चारित्र की कैसी सुंदर आराधना करता है ! डूबानेवाली लक्ष्मीसे पार उतरनेके लिए कैसी सुंदर युक्ति लड़ाता है| भवांतरमें उसे दर्शन-ज्ञान-चारित्र के भाव और सामग्री की सहज प्राप्ति होती है| पेथड़शा मंत्रीने महामंत्र नवकारकी आराधना के अवसर पर ६८ चांदीके कलश, ६८ चांदीकी थाली, ६८ चांदीकी कटोरी इत्यादि ६८-६८ वस्तुसे उद्यापन किया था|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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