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क्षमा-याचना के अवसर पर

क्षमा याचना के अवसर पर

१) खुदको ही अपराधी मानना…दोनों को नहीं|
२) मनसे अपने अपराधों का स्वीकार करना|
३) अपनी भूलके कारण जिसको सहना पड़ा है, उसकी उदारता और सहनशक्ति की प्रशंसा करना|
४) ‘‘फिरसे ऐसी भूल नहीं होगी’’ ऐसे मानसिक संकल्प के साथ उस तरह का वचन देना|
५) जिसके पास क्षमा-याचना करते हो वह शायद तिरस्कार करे या फिटकार दे, तब भी स्वस्थ रहना चाहिए और बिचार करना कि मेरी भूलके कारण उसका दिल कितना जख्मी हुआ होगा कि दिलमें लगी हुई चोट के कारण मुझे इतना धिक्कार दे रहे हैं| अरे ! मैंने कैसा दुष्कृत किया|
६) उस समय या बादमें दूसरा कोई आपकी क्षमा मांगने की हिंमत को दाद दे और ‘फिर भी क्षमा देनेवाले ने कैसा तिरस्कार किया’ कहकर उसकी निंदा करे, तब उसे वास्तविकता बताकर खुले दिलसे ईकरार करना की ‘भाई ! मैंने निर्मम बनकर मेरे अपराधोंसे उनके दिलको जो ठेस पहुंचाई है, उसके सामने यह तिरस्कार बहुत ही सामान्य, गिनती में लेने लायक नहीं है|’ ऐसे बिचारों से मनको क्षमामय बना दें|

श्र मैं क्षमा याचना करता हूँ और वह धिक्कार बरसा रहा है, तो मुझे भी क्या पडी है कि मैं उसका मुंह चाटने जाऊँ ! क्षमा याचना करके मैं झूकता हूँ तब वह मेरे सिर पर चढ़ना चाहता है | मेरी भूल हुई तो मैं क्षमा याचना कर लेता हूँ, इसलिए मेरा हिसाब तो पूरा हो गया| अब वह क्यूँ अकड़ता रहता है|

श्र अगर यह मेरी गलती है, तो क्या मुझे दंड दे, धिक्कार दे, यह उसकी गलती नहीं है ? चलो मान लेता हूँ कि मैंने ही गलती की है, और चाहो तो उसकी क्षमा याचना भी कर लेता हूँ…परन्तु मेरी छोटी सी भूलको पकड़कर बैठना, बार बार इतना बड़ा स्वरूप देना, यह क्या उसकी बड़ी भूल नहीं है ?

श्र मैं बड़ा हूँ इसलिए मैं क्षमा याचना करने क्युं जाउँ ? ऐसे तो उसने भी बहुत गलतियॉं की हैं, और वह मुझसे छोटा है| पहले उसे क्षमा याचना करनी चाहिए|

श्र वह खराब है| मैं क्षमा याचना करने जाऊँगा तो स्वयंको सही और मुझे गलत मानकर अधिक दुष्ट बनेगा| बार बार लोगोंमें मेरी बेइज्जती करेगा और मुझे लज्जित करेगा|

श्र जिसकी भूल बड़ी हो उसे पहले क्षमा याचना करनी चाहिए| यदि मेरी गलती बडी होती, तो मैं क्षमा याचना कर लेता, लेकिन उसकी गलति बडी हैं इसलिए उसे पहले क्षमा याचना करनी चाहिए|

ऐसी-ऐसी जो कोई भी कल्पनाएँ अपने मनमें प्रकट होती हैं वे सभी गलत हैं, जो शुद्ध मनसें क्षमा याचना करनेमें अवरोधक होती हैं| क्योंकि क्षमा याचना करनेमें छोटे-बड़े का, छोटी-मोटी भूल का, दुर्जन-सज्जन का कोई भेद नहीं होता| जो सामने से क्षमा याचना करता है वही बड़ा है, वही ज्ञानी है और वही सज्जन है| उसकी बडी भूल भी कोई मायना नहीं रखती| वह दूसरों को भी क्षमा याचना करने में प्रेरक बनता है| वह क्षमारूपी अमृतमय चक्रकी शुभ शुरुआत करनेवाला होता है| वह क्षमाभावकी प्रभावना करता है| उसने अहँकार को जीता है, इसलिए वह वंदन योग्य और पूजन योग्य है|)

छोटाभाई अपनी पत्नी के साथ क्षमा याचना करने के लिए जा रहा है| दोनों के मनमें बड़े भाई-भाभी के प्रतिभाव के विषयमें शंका है| हर कदमपर हजारों टन के अहंकार को तोडने का पुरुषार्थ है| सचमुच यह एक एक कदम उत्कृष्ट तीर्थयात्रा समान है, जो अनंत कर्म की निर्जरा का कारण बनता है| दोनों धडकते हुए हृदय के साथ बड़े भाई के घर तक पहुँचे| सालों से जो भाई के साथ बात-चीत का संबंध नहीं था, जिस भाई के साथ नाता बिगडा था, उस बड़े भाई को अब किस मुँह से बुलायेंगे ? हृदयमें दुविधा है….. भयंकर डर है….

हिंमत रखकर छोटे भाईने बड़े भाई का दरवाज़ा खटखटाया| अंदरसे बड़े भाई की आवाज़ आई – कौन है? बहुत सालोंसे बड़े भाईकी आवाज़ सुनकर छोटा भाई क्षणभर तो कॉंपने लगा| पसीना छूट गया| बड़ी मुश्किल से दिल पर काबु पाकर छोटे भाईने जवाब दिया कि बडे भैया ! वह तो मैं हूँ| आप दरवाजा खोलिए|

छोटेभाई की शांत आवाज़ से, वर्षो तक बड़े भाईके हृदयमें गड़े हुए द्वेषरूपी धधकते तेलमें मानो पानी का बूंद गिरा | दिमाग फट गया| गुस्सा खौलने लगा| मानो हड़काये कुत्ते को दुत्कारते हो इस तरह बड़ा भाई दरवाजा खोले बिना ही दहाड़ कर बोला… चला जा| नालायक ! यहॉं पैर क्यूँ रखा ? हरामखोर ! इतने सालोंसे तो मेरे सामने लड़कर मेरी नींद हराम कर दी है और आज फिर परेशान करने आया है| चला जा .. यहॉंसे .. दरवाजा नहीं खुलेगा|

क्षमा याचना के अवसर पर
बड़ेभाई की दहाड़से पलभर भयभीत बने हुए छोटेभाई को उसकी पत्नीने हिंमत दी| छोटे भाईने फिरसे गद्गदित स्वरसे कहा- भैया ! इसलिए ही तो आया हूँ| क्षमा याचना करनी है| अब तो इतना ही कहा था कि बडाभाई तड़के- निकल जा यहॉंसे ! माफी की बात करनेवाला! इतना परेशान करते समय क्षमा याद न आई और आज याद आई| छोटाभाई गिडगिडाने लगा.. बड़ेभैया ! मैं आपको छोड़कर कहॉं जाऊँ ? यह सुनते ही बड़ा भाई फिरसे दागते हुए बोला.. इतने साल से मुझे छोड़कर पत्नी की पहलूमें शरण लेनेवाले तुजको मैं आज याद आया.. जा.. जा जहॉं जाना हो वहॉं जा.. रेल की पटरी पर सो जा या समुद्रमें डुबकी लगा, लेकिन तू मुझे यहॉं नहीं चाहिए| छोटेभाईने रोते हुए बोला- भैया ! एकबार मुझे आपके पैर पकड़ने दो.. बादमें आप जो कहेंगे वही करुँगा|

और बड़ेभाई का क्रोध आसमान को छूने लगा – दरवाज़ा खोलते ही छोटेभाई को लात लगा दी| नालायक ! परेशान कर रहा है| चैन से रहता नहीं और चैनसे रहने भी नहीं देता| परन्तु छोटेभाईने तो निर्णय कर लिया था कि अब क्रोध, द्वेष, वैर चाहिए ही नहीं| जो सहन करना पड़े वह सहकर भी क्षमा-याचना करके इस बात को निपटाना है| बड़े भाईने लात लगाई, परन्तु छोटेभाईने बड़ेभाई के पैर पकड लिये| बड़ेभैया! बड़ेभैया ! इतना बोलते ही फूट-फूटकर रोने लगा और बड़े भाईके चरणमें ही गिर पड़ा| उसकी पत्नी भी बड़े भाईके चरणोमें गिरकर हमे क्षमा कर दो, क्षमा कर दो ऐसा कहकर सिसकने लगी| अंदरसे जेठानी ने हल्ला किया.. ये सब नौटंकी नहीं चलेगी| आप उनके आँसुओंसे जरा भी मत पिघलना…ऐसा बड़बड़ाहट करते करते जब वहॉं आई तब ही छोटेभाईने भाभी ! भाभी ! मुझे मारो ! पीटो ! फटकारो ! मुझे जो कहना है वह कहो, परन्तु मुझे क्षमा करो| छोटेभाई की पत्नी भी जेठानी के पैरोंमें पड़कर रोने लगी| आप माता समान हो| हमने आपको बहुत संताप दिया… हमें क्षमा करो..| दोनों रोते हुए सिसकते हुए क्षमा याचना करने लगे|

बडा भाई-भाभी आखिर तो जैन थे| क्षमा को समझते थे| भाई के अश्रुको पहचानते थे| छोटेभाई के अस्खलित रुदनसे बड़ाभाई पिघल गया| छोटेभाई को अपने गले लगाकर कहने लगा ‘अरेरे ! रमेश (छोटेभाई का नाम) मैंने तुझे बहुत परेशान किया| पिताजीको दिए हुए वचनको भी मैं भूल गया| रमेश ! मुझे माफ कर ! मुझे माफ कर !’ जेठानी ने देवरानी को गले लगाकर रोते रोते क्षमा याचना की|

चारोंकी आँखोमेंसे अश्रुकी धारा बहने लगी| मानों देव भी यह दृश्य देखकर स्तंभित हो गये| आँसुकी यह बहती गंगामें चारोंके मनके पाप-द्वेष-पूर्वकाल की कटु स्मृतियॉं… सब बह गई| कुछ समय तक तो चारोंमें से कोई बोल भी नहीं पाया| मात्र आँसु ही बहते रहे| आखिर स्वस्थ होकर बड़ेभाईने छोटेभाई को हाथ पकड़कर घरमें सोफा पर बिठाया| छोटेभाईने भी तीन साल तक किये हुए द्वेषका एकरार किया और आज क्षमा याचना करनेका मन क्यूँ हुआ ? इन सभी बातोंका विस्तार किया| बात सुनते सुनते पुनः सभी रोने लगे| आखिर जब स्वस्थ हुए तब बड़ेभाईने छोटेभाई को अंतःकरण से मिच्छामि दुक्कडम् दिया और बड़ा भाई कहने लगा कि आजसे अपना घर पुनः एक हो रहा है| एक ही रसोईघरमें रसोई होगी और रमेश ! आजसे तुझे नौकरी नहीं जाना है| आजसे हम दोनों दुकान संभालेंगे और तुझे जो बीस हजार का कर्ज हुआ है वह भी इसकी कमाई में से निपटा लेंगे|

क्षमा याचना के अवसर पर
बोलो ! क्षमा याचना करने की और क्षमा प्रदान करने की प्रक्रिया कितनी महान है कि खुद के सामने लड़ने में छोटेभाई को जो कर्ज हुआ है वह भी निपटाने के लिए बड़ा भाई तैयार है| यह किसकी कमाल ? कहो क्षमाभाव की ! कहो तो सही कि यह क्षमा भाव ने दोनों भाईके हृदय के तार को कैसे जोड़े होंगे ? दोनों के घरमें हर्ष-आनंद-उल्लासके जो दीप जले होंगे, वे बाहर कितने दीप करनेसे प्रकट कर सकते हैं? मेरा प्रश्न है कि कितने करोड़ रू. का खर्च करने से वह प्राप्त होगा ? आप हिसाब कीजिए| संवत्सरी प्रतिक्रमण भी कितने भावपूर्वक हुआ होगा? यदि आप रुपिये-पैसे का हिसाब छोड़ने के लिए तैयार हो, आप छोटे-बड़े का अपमान सहन करने के लिए तैयार हो… आप न्याय-अन्याय की भाषा को छोड़ने के लिए तैयार हो, तो आप दिल के भाव, हृदयका प्रेम, क्षमाभाव का उज़ाला और मिच्छा मि दुक्कडम् के आनंद की अनुभूति कर सकेंगे| आप आपके ही स्वजन, संबंधी, पार्टनर आदि को सदा के लिए आपके सच्चे, प्यारे स्नेही-स्वजन बना सकेंगे| इसलिए ही इस पर्वके निमित्त को पाकर दिलसे क्षमा याचना करनी चाहिए और जो क्षमा याचना करने आता है, उसको भी सच्चे अंतःकरणसे क्षमा प्रदान करनी चाहिए|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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