अनुभव ! हम तो रावरी दासी,
आइ कहातें माया ममता,जानुं न कहां की वासी?
…१
अनुभव ! हम तो रावरी दासी…
रीज परे वांके संग चेतन, तुम क्युं रहत उदासी?
वरज्यो न जाय एकांत कंत को लोकमें होवत हांसी
…२
अनुभव ! हम तो रावरी दासी…
समजत नाहि निठुर पति एति पल एक जात छमासी
आनंदघन प्रभु घर की समता अटकली और लबासी
…३
अनुभव ! हम तो रावरी दासी…
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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