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अखरोट का पौधा

अखरोट का पौधा

परोपकारः पुण्याय
फारस में एक बादशाह बड़ा ही न्याय प्रिय था| वह अपनी प्रजा के दुख-दर्द में बराबर काम आता था| प्रजा भी उसका बहुत आदर करती थी| एक दिन बादशाह जंगल में शिकार खेलने जा रहा था, रास्ते में देखता है कि एक वृद्ध एक छोटा सा पौधा रोप रहा है|

बादशाह कौतूहलवश उसके पास गया और बोला, ‘‘यह आप किस चीज का पौधा लगा रहे हैं ?’’ वृद्ध ने धीमें स्वर में कहा, ‘‘अखरोट का|’’ बादशाह ने हिसाब लगाया कि उसके बड़े होने और उस पर फल आने में कितना समय लगेगा| हिसाब लगाकर उसने अचरज से वृद्ध की ओर देखा, फिर बोला, ‘‘सुनो भाई, इस पौधै के बड़े होने और उस पर फल आने मे कई साल लग जाएंगे, तब तक तु कहॉं जीवित रहोगे ?’’वृद्ध ने बादशाह की ओर देखा| बादशाह की आँखों में मायूसी थी| उसे लग रहा था कि वह वृद्ध ऐसा काम कर रहा है, जिसका फल उसे नहीं मिलेगा|

यह देखकर वृद्ध ने कहा, ‘‘आप सोच रहें होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूँ| जिस चीज से आदमी को फायदा नहीं पहुँचता, उस पर मेहनत करना बेकार है, लेकिन यह भी सोचिए कि इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना फायदा उठाया है ? दूसरों के लगाए पेड़ों के कितने फल अपनी जिंदगी में खाए हैं ? क्या उस कर्ज को उतारने के लिए मुझे कुछ नहीं करना चाहिए? क्या मुझे इस भावना से पेड़ नहीं लगाने चाहिए कि उनके फल दूसरे लोग खा सकें? जो अपने लाभ के लिए काम करता है, वह स्वार्थी होता है|’’ बूढ़े की यह दलील सुनकर बादशाह चुप रह गया|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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