शिवमस्तु सर्वजगतः
एक दुकानदार अपनी दुकान खोलने से पहले एक मंगला- चरण बोला करता था –
गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर|
दुश्मन का टुकड़ा करो, ताक लगाओ तीर॥
एक साधु ने जब यह सुना तो उसने दुकानदार को सम झाया कि मंगलाचरण में मंगल भावना ही प्रकट होनी चाहिये| तीर से दुश्मन के टुकड़े कर देने की भावना मंगल नहीं है|
तब दुकानदार बोला-महाराज ! आप तो ज्ञानी हैं और हम तो कुछ नहीं जानते| आप ही यदि हमें कुछ सिखा देंगे तो आगे से हम वैसा ही बोलेंगे|
तब साधु महाराज ने उसे निम्नलिखित पद सिखाया -
गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर|
दुर्जन को सज्जन करो, नौत जिमावे खीर॥
यह छन्द सुनकर दुकानदार को बड़ी खुशी हुई| उस दिन से वह इसी छन्द का उच्चारण करने लगा|
सब के भले की भावना में ही हमारा कल्याण है|
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
“We must have friendship for all; we must be merciful toward those that are in misery; when people are happy, we ought to be happy; and to the wicked we must be indifferent. These attitudes will make the mind peaceful.”
“हमें सभी जीवोसे मित्रता होनी चाहिए;
हमें दुखियों के प्रति करुणाभाव होना चाहिए;
जब लोगों सुखी हो तो यह देख हमें भी सुखी होना चाहिए;
और दुष्ट के प्रति उपेक्षाभाव रहना चाहिए.
ऐसे अंतर के भावो मनको शांतिपूर्ण रखेगा.”
~Swami Vivekanand स्वामी विवेकानन्द