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भले की हो भावना

भले की हो भावना

शिवमस्तु सर्वजगतः
बहुत से याचक भीख मॉंगते वक्त बोलते हैं – दे उसका भी भला और न दे उसका भी भला! इसका मतलब यह है कि कोई मुझे कुछ दे या न दे, मैं तो सबका भला चाहता हूँ| लोक कल्याण की यह भावना साधुजनों में कूट-कूट कर भरी रहती है|

एक दुकानदार अपनी दुकान खोलने से पहले एक मंगला- चरण बोला करता था –

गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर|
दुश्मन का टुकड़ा करो, ताक लगाओ तीर॥

एक साधु ने जब यह सुना तो उसने दुकानदार को सम झाया कि मंगलाचरण में मंगल भावना ही प्रकट होनी चाहिये| तीर से दुश्मन के टुकड़े कर देने की भावना मंगल नहीं है|

तब दुकानदार बोला-महाराज ! आप तो ज्ञानी हैं और हम तो कुछ नहीं जानते| आप ही यदि हमें कुछ सिखा देंगे तो आगे से हम वैसा ही बोलेंगे|

तब साधु महाराज ने उसे निम्नलिखित पद सिखाया -

गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर|
दुर्जन को सज्जन करो, नौत जिमावे खीर॥

यह छन्द सुनकर दुकानदार को बड़ी खुशी हुई| उस दिन से वह इसी छन्द का उच्चारण करने लगा|

सब के भले की भावना में ही हमारा कल्याण है|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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1 Comment

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  1. Dilip Parekh
    अप्रैल 25, 2015 #

    “We must have friendship for all; we must be merciful toward those that are in misery; when people are happy, we ought to be happy; and to the wicked we must be indifferent. These attitudes will make the mind peaceful.”

    “हमें सभी जीवोसे मित्रता होनी चाहिए;
    हमें दुखियों के प्रति करुणाभाव होना चाहिए;
    जब लोगों सुखी हो तो यह देख हमें भी सुखी होना चाहिए;
    और दुष्ट के प्रति उपेक्षाभाव रहना चाहिए.
    ऐसे अंतर के भावो मनको शांतिपूर्ण रखेगा.”

    ~Swami Vivekanand स्वामी विवेकानन्द

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