सीलवंता बहुस्सुया
ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त त्रस्त (भयाक्रान्त) नहीं होते
अज्ञानी दुराचारी से अपराधी बनता है और दुःख पाता है – दण्ड भोगता है – पछताता है| भ्रम से वह यह समझता है कि दुराचरण से सुख मिलेगा; इसलिए सुशीलता का त्याग करके कुशील बन जाता है| दुर्व्यसनी बन जाता है और अपना जीवन बर्बाद कर देता है| यदि आँखें खोलकर वह चारों ओर रहनेवाले अन्य दुर्व्यसनियों का जीवन देखे और उस पर विचार करे तो आसानी से वह यह बात समझ सकता है कि उनका जीवन दुर्व्यसनों का गुलाम है – दुःखी है; उनकी मनोवृत्तियॉं सहज और स्वाभाविक रूप से काम नहीं कर रही हैं|
इस प्रकार वह स्वयं को दुर्व्यसनों से दूर रख सकता है – सुशील बन सकता है| जान सकता है और उसे यह जानना ही चाहियेकि ज्ञानी और सदाचारी मृत्युपर्यन्त (जीवनभर) त्रस्त (दुःखी) नहीं होते|
- उत्तराध्ययन सूत्र 5/26
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