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श्रुतशील-तप

श्रुतशील तप

कसाया अग्गिणो वुत्ता,
सुयसीलतवो जलं

कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है

क्रोध, मान, माया और लोभ – ये चार कषाय हैं| अग्नि की तरह ये आत्मा को जलाते रहते हैं – अशान्त और क्षुब्ध बनाते रहते हैं| इनसे कैसे बचा जाये ? इसका उपाय इस सूक्ति में बताया गया है|घर में आग लग जाये; तो उसे जल से बुझाया जाता है, इसी प्रकार आत्मा में लगी हुई कषाय की आग को बुझाने के लिए भी श्रुत, शील और तप रूप जल का उपयोग करने का परामर्श दिया गया है|

श्रुत का अर्थ है – सुना हुआ| आचार्य सुधर्मा स्वामी ने जो कुछ सुना है, उसे जैनश्रुत, जैनशास्त्र या जैनआगम कहते हैं| इनका स्वाध्याय करने से कषाय दूर रहते हैं| वे आत्मा को जला नहीं पाते|

शील या सदाचार भी एक प्रकार का जल है| दुराचारी के साथ भी सदाचार का व्यवहार किया जाये तो वह धीरे-धीरे दुराचार छोड़ कर सदाचारी बन सकता है| तपस्या से भी मनोवृत्तियों पर अंकुश लग जाता है; इसलिए जल की तरह तप भी शान्तिदायक है|

- उत्तराध्ययन सूत्र 23/53

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