कसाया अग्गिणो वुत्ता,
सुयसीलतवो जलं
सुयसीलतवो जलं
कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है
श्रुत का अर्थ है – सुना हुआ| आचार्य सुधर्मा स्वामी ने जो कुछ सुना है, उसे जैनश्रुत, जैनशास्त्र या जैनआगम कहते हैं| इनका स्वाध्याय करने से कषाय दूर रहते हैं| वे आत्मा को जला नहीं पाते|
शील या सदाचार भी एक प्रकार का जल है| दुराचारी के साथ भी सदाचार का व्यवहार किया जाये तो वह धीरे-धीरे दुराचार छोड़ कर सदाचारी बन सकता है| तपस्या से भी मनोवृत्तियों पर अंकुश लग जाता है; इसलिए जल की तरह तप भी शान्तिदायक है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 23/53
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