संसार की तृष्णा भयंकर फल देनेवाली एक भयंकर लता है
लता हरी-भरी होती है, सुन्दर होती है, मनोहर होती है| भवतृष्णा भी लता की तरह सुन्दर और मनोहर होती है|
लता जिस प्रकार पेड़ का सहारा पाकर धीरे-धीरे उस पर चढ़कर फैल जाती है; उसी प्रकार भवतृष्णा भी व्यक्ति का सहारा पाकर धीरे-धीरे मन पर सवार होकर फैल जाती है – आत्मा पर छा जाती है|
लता जिस प्रकार वृक्ष का रस चूस कर पुष्ट होती है; उसी प्रकार भवतृष्णा भी प्राणी का आनन्द चूस कर स्वयं पुष्ट होती रहती है; इसलिए लता की तरह भवतृष्णा हानिकर है, भयंकर है|
लता की संगति से पेड़ का शोषण होता है| उस पर लगे हुए फल उस भयंकर शोषण के ही सूचक हैं| पेड़ के स्वस्थ विकास के लिए लता का त्याग आवश्यक है| आत्मा के भी स्वस्थ विकास के लिए भवतृष्णा का त्याग आवश्यक है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 23/48
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