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अड़ियल टट्टू

अड़ियल टट्टू

मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो

बार बार चाबुक की मार खाने वाले गलिताश्‍व (अड़ियल टट्टू) की तरह कर्तव्यपालन के लिए बार-बार गुरुओं के निर्देश की अपेक्षा मत रखो

नित्य करने के लिए जो कर्त्तव्य निर्दिष्ट हो, उसे बिना कहे स्वयं प्रेरणा से प्रतिदिन करते रहने में ही शिष्य की शोभा है| विवेकी सुविनीत शिष्य ऐसा ही करते हैं और अपने गुरुओं के हृदय में स्थान पा लेते हैं|

इसके विपरीत जो शिष्य अविवेकी होते हैं – अविनीत होते हैं, उन्हें नित्य करने के कार्यों का भी प्रतिदिन निर्देश करना पड़ता है| ऐसे शिष्य गुरुओं की दृष्टि में ऊँचे नहीं उठ सकते | अपनी मूर्खता के कारण वे गुरुओं को अप्रस कर दिया करते हैं|

ऐसे शिष्यों की गलिताश्‍व अर्थात् अड़ियल टट्टू से तुलना की जा सकती है; क्यों कि ऐसा टट्टू एक बार चाबुक खा कर कुछ दूर तक बराबर चलता है, फिर खड़ा हो जाता है और दुबारा चाबुक मारने पर फिर कुछ दूर चलकर अड़ जाता है| इस प्रकार उसे चलाने के लिए बार-बार चाबुक का प्रहार करना पड़ता है|

कहा गया है कि शिष्यों को ऐसा अड़ियल टट्टू नहीं बनना चाहिये|

- उत्तराध्ययन सूत्र 1/12

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