post icon

दुष्कर कुछ नहीं

दुष्कर कुछ नहीं

इह लोए निप्पिवासस्स,
नत्थि किंचि वि दुक्करं

इस संसार में जो निःस्पृह है, उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है

इस संसार में सबसे बड़ी बाधा अपनी आसक्ति है – स्पृहा है – इच्छा है – वासना है | जो अनासक्त नहीं है, वह अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर सकता – जो स्वार्थी है, वह परोपकार या परमार्थ नहीं कर सकता|

अमुक वस्तुओं की प्राप्ति अर्थात् इन्द्रियों के विभि विषयों की सामग्री का सञ्चय जिसका लक्ष्य बन जाता है, उसका तन-मन-धन और सर्वस्व उसी में लगा रहता है| आत्म-कल्याण या आत्मोति की बात वह सोच ही नहीं सकता| जो स्वार्थ-साधना में तल्लीन है, उसे आत्मसाधना की बात ध्यान में भी नहीं आ सकती|

इसके विपरीत जो निःस्पृह है – निःस्वार्थ है – अनासक्त हैं, उसके लिए ऐसा कोई कार्य नहीं, जिसे वह न कर सके| सभी कार्य उसकी सामर्थ्य के भीतर रहते हैं|

निरीह साधक किसी विषय में आसक्त नहीं होता; इसलिए उसका अपना कोई स्वार्थ न होने से वह कुछ नहीं चाहता अथवा स्वपर-कल्याण के अतिरिक्त वह और किसीकी कामना नहीं रखता, जिसकी पूर्ति उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं होती|

- उत्तराध्ययन सूत्र 16/45

Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR