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वाणी कैसी हो?

वाणी कैसी हो?

भासियव्वं हियं सच्चं

हितकर सच्ची बात कहनी चाहिये

हम जो कुछ बोलें, उससे अपना या दूसरों का भला होना चाहिये| यदि ऐसा नहीं होता तो समझना चाहिये कि हमारी वाणी व्यर्थ गयी|

बिना पाठ याद किये कक्षा में आने वाले छात्रों को यदि पीट दिया जाये; तो फिर कभी दूसरे दिन पाठ याद न होने पर वे सोच लेते हैं – ‘कोई बात नहीं; गुरुजी एक थप्पड़ ही तो मारेंगे? सह लेंगे|’ इस प्रकार पिटाई से उनमें ढिटाई (धृष्टता) आ जायेगी और पाठ याद करने की वृत्ति पैदा न हो सकेगी| इसकी अपेक्षा उन्हें प्रेम से यदि यह समझा दिया जाये कि रोज का पाठ रोज याद न करने से क्या-क्या हानियॉं होती हैं; तो वे नियमित पाठ याद करने की प्रेरणा पा सकते हैं|

इसी प्रकार बुराई की सीधी आलोचना करने से अपराधी क्रुद्ध हो जाते हैंऔर सुधर नहीं पाते| इसकी अपेक्षा कथाओं के माध्यम से उन्हें यह समझाया जाये कि किसकिसने अमुक अपराध से क्या क्या हानियॉं उठाई थीं; तो अपराधी के सुधार की उससे आशा की जा सकती है|

वाणी यथार्थ भी होनी चाहिये; अन्यथा एक बार वक्ता पर अविश्‍वास हो गया; तो उसकी वाणी प्रभावहीन हो जायगी|

इस प्रकार इस सूक्ति द्वारा बताया गया है कि हमारी वाणी हितकर भी हो और सच्ची भी|

- उत्तराध्ययन सूत्र 16/27

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