पियमप्पियं सव्वं तितिक्खएज्जा
प्रिय हो या अप्रिय-सबको समभाव से सहना चाहिये
भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी, दंश (डॉंस-मच्छरों का डंक) वस्त्राभाव, आक्रोश, वध-याचना, कठोर शैया आदि बाईस परीषहों को शान्तिपूर्वक सहन करनेवाले श्रमण ही अपनी साधना में सफलता पाया करते हैं|
गृहस्थों के जीवन में भी कदम-कदम पर सहिष्णुता की आवश्यकता होती है| क्षुब्ध होना या क्रुद्ध होना दो बहुत सरल कार्य हैं – अपनी अदूरदर्शिता व मूर्खता से कोई भी व्यक्ति अशान्त हो सकता है; परन्तु दूरदर्शी सुज्ञ पुरुष क्षोभ के कारण उपस्थित होने पर भी क्षुब्ध नहीं होते| समभाव और सहिष्णुता का सर्वत्र वे परिचय देते हैं|
- उत्तराध्ययन सूत्र 21/15
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