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बूढे बैल

बूढे बैल

तत्थ मंदा विसीयंति, उज्जाणंसि जरग्गवा

चढ़ाई के मार्ग में बूढे बैलों की तरह साधनामार्ग की कठिनाई में अज्ञ लोग खि होते हैं

साधना के मार्ग में बहुत धीरज से चलते रहने की आवश्यकता होती है| उसमें संकट आते हैं – कठिनाइयॉं आती हैं – बाधाएँ आती हैं| बुद्धिमान साधक यह सोचते हैं कि यह सारा उपद्रव हमारे धैर्य की परीक्षा के लिए हो रहा है| इस प्रकार उन पर विजय पाने के लिए उनमें पर्याप्त उत्साह जागृत हो जाता है|

किन्तु मन्द (अज्ञ) व्यक्तियों की क्या दशा होती है? सूत्रकार कहते हैं कि उँची चढ़ाई के समय जिस प्रकार बूढ़े बैल विषण्ण होते हैं – दुःखी होते हैं, उसी प्रकार साधनामार्ग में आनेवाली विपत्तियों में अल्पज्ञ कायर लोग विषण्ण होते हैं – खिन्न होते हैं – निराश होते हैं और कोई-कोई तो इतने अधिक व्याकुल हो जाते हैं कि उल्टी दिशा में चल पड़ते हैं| ऐसे लोग सॉंड़ या जवान बैल नहीं, बूढे बैल हैं|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/3/2/21

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