उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी,
सिज्झंसु पाणा बहवे दगंसि
यदि जलस्पर्श (स्नान) से ही सिद्धि प्राप्त होती तो बहुत-से जलजीव सिद्ध हो जाते
बहुत-से लोग स्नान करके समझते हैं कि उन्होंने बहुत बड़ी आत्मसाधना कर ली है, परन्तु ऐसे लोग अन्धविश्वास के शिकार हैं| वे नहीं समझते कि शारीरिक शुद्धि और आत्मिकशुद्धि में बहुत बड़ा अन्तर है|
कई लोग शरीर की शुद्धि तो कर लेते हैं; किंतु उनका मन अशुद्ध ही बना रहता है| इसके विपरीत कई लोगों का शरीर भले ही अशुद्ध हो, मन बिल्कुल शुद्ध होता है| आप ऐसे दो व्यक्तियों में से किसे अपना मित्र बनाना पसंद करेंगे? किस पर विश्वास करते हैं ? मानसिक रूप से शुद्ध व्यक्ति को ही न| इससे मानसिक शुद्धि का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है|
यदि स्नान से ही मानसिक शुद्धि प्राप्त हो जाती; तो पानी में रहनेवाले बड़े-बड़े मगरमच्छों से लेकर छोटे-से छोटे अमीबा तक सारे जलजन्तु कभी के सिद्ध बन गये होते| सिद्धि के लिए आवश्यक है – आन्तरिक शुद्धि|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/7/14
Did you like it? Share the knowledge:
No comments yet.
Leave a comment