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अनन्तसुख का नाश मत कीजिये

अनन्तसुख का नाश मत कीजिये

माएयं अवमन्जंता, अप्पेणं लुंपहा बहुं

सन्मार्ग का तिरस्कार करके अल्प सुख (विषयसुख) के लिए अनन्त सुख (मोक्षसुख) का विनाश मत कीजिये

यदि कोई हीरे के बदले कङ्कर ले ले तो उसे आप क्या समझेंगे ? आप समझेंगे, वह मूर्ख है| सुमार्ग के बदले कुमार्ग को अपनाने वाले भी ऐसे ही मूर्ख हैं|

कुमार्ग में इन्द्रियों के विषयों का आकर्षण होता है, सुमार्ग में उसकी आशा कहॉं ? विषयों का सुख शीघ्र प्राप्त होता है; किन्तु क्षणिक होता है| इसके विपरीत मोक्ष-सुख चिरकालीन कठोर साधना के बाद प्राप्त होता है, परन्तु स्थायी होता है – अनन्त होता है|

मोक्षधाम में पहुँचने से पहले ही बुद्धिमान व्यक्ति उस अनन्त सुख का काल्पनिक भोग करते हुए क्रमशः उस ओर बढ़ते रहते हैं| वे ही लोग हैं, जो कुमार्ग में बढ़ने की तैयारी करने वाले लोगों को परामर्श देते हैं – ‘‘स्वल्प सुख के लिए अनन्त सुख का नाश मत कीजिये!’’

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/3/4/7

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