न विरुज्झेज्ज केण वि
किसी के साथ वैर-विरोध मत करो
हमारे सुख-दुःख के कारण स्वयं हम हैं – हमारे पूर्वजन्म में उपार्जित कर्म हैं| यदि कभी शुभ कर्मों की प्रबलता हुई; तो अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण हो जायेगा और यदि अशुभ कर्मों की प्रबलता हुई तो हमें चारों ओर से प्रतिकूल परिस्थितियॉं घेर लेंगी|
इस प्रकार हमारी प्रतिकूलताओं या कष्टों का दायित्व हमारे ही कर्मों पर है, अन्य व्यक्तियों पर नहीं| ऐसी अवस्था में किसी को वैरी, दुष्ट या विरोधी समझकर उससे व्यर्थ ही कलह करना कैसे उचित कहा जा सकता है? सदाचार और सन्तोष की आध्यात्मिक साधना करनेवालों को मार्गदर्शन करते हुए ज्ञानीजन कहते हैं – सबसे मित्रता रखिये – किसी व्यक्ति के साथ वैरविरोध मत कीजिये|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/11/12
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