सत्य ही भगवान है
कोई उसे साकार मानता है, कोई निराकार – कोई सगुण मानता है, कोई निर्गुण-कोई उसे जगयिन्ता कहता है, कोई उसे जगत से निर्लिप्त-कोई उसे न्यायकर्त्ता एवं दण्डदाता मानता है; तो कोई उसे तटस्थ वीतराग|
अनेकान्तवादी इन सारे मतों को सापेक्ष सत्य मानता है; इसलिए उसकी दृष्टि में सत्य ही भवभयमोचक भाग्यविधाता भगवान है|
एकान्तवादी मिथ्यात्वी है, क्योंकि वह केवल अपने ही मत पर अड़ा रहता है – उसकी दृष्टि संकीर्ण होती है – किसी भी सिद्धान्त को वह दूसरों के दृष्टिकोण से समझने की कोशीश नहीं कर सकता – वह इतना मताग्रही अथवा दुराग्रही बन जाता है कि दूसरों के दृष्टिकोण को समझना तो दूर, वह सुनना भी पसन्द नहीं करता|
इसके विपरीत अनेकान्तवादी बड़ा सहिष्णु और उदार होता है – सम्यग्दर्शी होता है – सभी दृष्टिकोणों को सुनने समझने के लिए तत्पर रहता है, क्योंकि उसके लिए सत्य ही भगवान है|
- प्रश्नव्याकरण 2/2
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