देवावि सइंदगा न तित्तिं न तुट्ठिं उवलभन्ति
इन्द्रों सहित देव भी (विषयों से) न कभी तृप्त होते हैं, न सन्तुष्ट
सच्चा सुख तो वही होता है, जिसका नाश नहीं होता| ऐसा सुख विषयभोग से नहीं; किन्तु विषय-विरक्ति से ही प्राप्त हो सकता है|
प्राणियों को तो संसार में विषय-सामग्री जुटानी पड़ती है; परन्तु स्वर्ग में देवों और इन्द्रों को तो समस्त इन्द्रियों के लिए विविध विषय-सामग्री सहज ही सम्प्रास होती है; फिर भी ज्ञानी कहते हैं कि इन्द्रों सहित देव भी विषयभोगों से कभी तृप्ति या तुष्टि का अनुभव नहीं कर सकते, फिर प्राणियों की तो बात ही क्या है?
- प्रश्नव्याकरण 1/5
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