क्रोध को शान्ति से नष्ट करें
यदि क्रोध को भड़काने वाले कारणों से दूर रहें; तो क्रोध पर विजय पायी जा सकती है| यदि क्रोधी के सामने प्रसन्नचित व्यक्ति शान्ति से खड़ा हो जाये तो क्रोधी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता| प्रशान्त मनोवृत्ति वाले धीर-वीर समर्थ सत्पुरुष के सामने क्रोधी का क्रोध अधिक समय तक टिक ही नहीं सकता | ऐसे स्थल पर गिरा हुआ अंगारा, जहॉं घास न हो, क्या स्वयं ठण्डा नहीं हो जाता ?
यदि किसी समय क्रोध आ जाये; तो हमें उसके परिणामों पर विचार करना चाहिये| यदि वह संभव न हो; तो मन-ही-मन एक से सौ तक गिनती करनी चाहिये| इससे क्रोध नष्ट हो जायगा| गिनती करने का मतलब अपने मन को अन्यत्र मोड़ना है| गिनती के बदले अपने इष्टदेव का नामस्मरण भी किया जा सकता है| नामस्मरण के बदले एक सौ आठ मनकों वाली एक माला भी फिराई जा सकती है| जो भी संभव हो, करना चाहिये| इससे मन शान्त होता है और शान्ति से क्रोध का नाश !
- दशवैकालिक सूत्र 8/36
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