कम्ममूलं च जं छणं
जो क्षण है, वह कर्म का मूल है
हिंसा कर्म का मूल है; ठीक वैसे ही जैसे दया धर्म का मूल है | अहिंसा, संयम और तप को उत्कृष्ट धर्म माना गया है; तो हिंसा, असंयम और कुतपको कर्म मानना चाहिये| धर्म कर्म का विरोधी शब्द है|
धर्म-साधना करने वाले कर्मबन्धन से दूर रहते हैं और इसके लिए हिंसा से-प्राणों का अतिपात करने से-प्राणियों की हत्या करने से अपने-आपको बचाये रखते हैं; क्यों कि हिंसा से धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं हैं| धर्म का सम्बन्ध अहिंसा से है- यह एक प्रसिद्ध बात है|
वीतराग महापुरुषों ने विचार करके यह स्पष्ट घोषित कर दिया है कि धर्म का मूल अहिंसा और कर्म का मूल हिंसा है|
- आचारांग सूत्र 1/3/1
No comments yet.
Leave a comment